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________________ संभिन्नोक्त्त होता श्री से वंचित :२ १३५ मन' का कलुष अगर ज्यों का त्यों, लाख संवारों तन क्या होगा ? दिन-दिन भारी अधिक गरिया, कान-छिन मैली अधिक चदरिया। पल-पल प्यास प्रबल होती है, रह-रह रिसती अधिक गगरिया । आज न वल्गा' अगर कसी तो, बतल सौ करो जतन क्या होगा ? अतः चित्त के दोषों को दूर करने का प्रपल करेंगे, तभी चित्त संभिन्न न रहकर आप का चित्त एकाग्र, अनुशासित, शान्त एवं न्वस्थ होगा। अतः आपके गुप्त चित्त में कोई प्रच्छन्न कसक, पीड़ा, व्यथा, दोष, ग्लानि आदि हो तो चित्त में रुके हुए उन दुष्ट विकारों को उसी तरह निकालकर फेंक दीजिए, जैसे आप अपने घर को झाड़बुहार कर स्वच्छ करते समय कूड़े-करकट को निकालकर बाहर फैंक देते हैं। एक बात और है जिसे रूठे या टूटे चित वाले का समझ लेना है। दुनिया में बुद्धिमान उसे समझा जाता है, जो रूठे हुए को मनाना और टूटे हुए को बनाना जानता हो। आप अपने कपड़े, वर्तन, फर्नीचर, मवज़न आदि को कहीं टूट-फूट जाने पर एकदम फैंक नही देते, उसकी मरम्मत करते-क प्रते हैं। सब कुछ नया ही नया हो, यह कैसे हो सकता है ? इस मामले में तो आप बड़े चतुर हैं। किन्तु चित्त यदि किसी कारणवश टूट रहा हो या टूटने की स्थिति में ही, उस समय क्या आप उसे सर्वथा बैंक देंगे, उसकी उपेक्षा कर देंगे, क्या आप उससे। होशियारी से काम नहीं लेंगे ? उसे भी आप टूटने नहीं देंगे। उसकी मरम्मत करेंगे। जहां कहीं चित्त की दरारों को जोड़ने वाले मित्र, स्नेही, गुरुजन या बुद्धिमान होंगे, उमसे सम्पर्क करके आप उसे जोड़ेंगे। उसी प्रकार परिवार में भी कोई व्यक्ति किसी कारणवश रूठ जाए, उच्छृखल होकर विद्रोह करने लगे तो क्या उससे परिवा का मुखिया भी रूठ बैठेगा ? यों बह बात-बात में रूठने लगेगा तो परिवार चलाना भी कठिन हो जाएगा। परिवार में कभी पत्नी से अनबन हो जाती है, कभी बच्चों से कहासुनी हो जाती है, कभी भाई से मनमुटाव और कभी पड़ोसियों से चख-चखह जाती है, अगर इस स्थिति को यो ही रहने दिया जाए या ऐंठ को कड़ी करते रहा जाए तो काम नहीं चलेगा। उलझनें बढ़ती ही जाएंगी, जिनके साथ रहना है, उनसे मधुर सम्बन्ध बनाए रखने में ही फायदा है। चित्त आपका निकट का सम्बन्धी है, आपके परिवार वालों, यहां तक कि शरीर और इन्द्रियों से अधिक समीप रहने वाला स्वजन है। चित्त की समझदारी और अनुकूलता-अधीनता से हमारे शरीर की अस्तव्यस्तता तथा सामाजिक, धार्मिक, पारिवारिक आदि सभी क्षेत्रों की उलझी हुई समस्याएँ मिनटों में सुलझ सकती हैं। प्रसिद्ध पाश्चात्य साहित्यकार गोल्डस्मिथ (Goldsmith) ने ठीक ही कहा है "A mind too vigorus and active serves only to consume the body to which it is joinest, as the richest jewels are १. 'युग गायन' से २. वल्गा का अर्थ है-लगाम
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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