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________________ १२८ आनन्द प्रवचन : भाग ६ संभिन्नचित्त : तुनुकमिजाज ऐसा भग्नचित्त व्यक्ति तुनुकमिजाज वाला भी बन जाता है। तुनुकमिजाजी एक बड़ी भारी दिमागी बिमारी है, जो प्रतिक्षण चित्ताकी प्रसन्नता, हंसी-खुशी और सामंजस्य पर चोट करती रहती है। तुनुकमिजाजी के कुछ उदाहरण लीजिए एक युवक की अपने कार्यालय में किसी कारणवश थोड़ी-सी भर्त्सना हो गई कि बस तुनुकमिजाज का पारा लाल बिन्दु तक च गया। उसके प्रतिकूल कल्पनाओं का झंझावात उठा। अब तो इस कार्यालय में अथवा अमुक अधिकारी के मातहत काम करने का धर्म ही नहीं रहा। एक स्वाभिमानी व्यक्ति ये सब बातें कैसे बरदाश्त कर सकता है ? आखिर मैं भी सरकारी नौकर हूँ। मेरी भी अपनी कुछ प्रतिष्टा है। कुछ भी हो, ऐसा अपमानित जीवन जीकर नौकरी अब नहीं करूंगा।' बस, इस कल्पना के सक्रिय होने में क्या देर लगती है ? तुनुकनिकाज युवक ने फट् से इस्तीफा लिखकर पेश कर दिया। अधिकारी ने उसका इस्तीफा मंजूर कर लिया और वह टाइप होकर उसके हाथ में आ गया। बस, तुनुकमिजाज साहब उसे लकेर अपने सहकर्मचारियों की मेजों पर जाकर लगे बड़बड़ाइने----'भाई ! मैंने तो इस नौकरी से अलविदा ले ली है। मैं सरकार से इस बात की लिखा-पढ़ी करूँघ।। जरा-जरा सी बात पर बिगड़ उठना अफसरों की आदत बन गई है। अपने मातहतों को तो वे तिनके की तरह तुच्छ समझते हैं।" अपनी सनक में उसे भान ही कों रहता कि जिस सह-कर्मचारी की मेज के पास खड़ा वह गुब्बार निकाल रहा है, उस पर क्या बीतेगी ? यदि उसका अधिकारी यह सुन या देख लेगा तो उसे भी न अनर्गल बातों में शामिल समझ लेगा, उसको भी नौकरी से बर्खास्त कर देगा। ऑफिसर से उसे बिगाड़ना नहीं है, बनाये रखना है। लेकिन तुनुकमिजाज की इसकी परवाह नहीं होती है। आखिरकार साथी उसे कह ही देते हैं- "कृपया ये सब बातें यहाँ न करिये, बाहर जाकर आपके मन में आए सो कहें और बकें।" बस, इस पर तुनुकमिजाज का पार। और गर्म हो गया। अपना अपमान समझकर साथी को भी विरोधी मानने लगे और उसी सनक में बकने लगे- "ये सय अफसरों के गुलाम हैं। किसी में भी स्वाभिमान नहीं है। सबके सब बुरे हैं। कोई उसकी बात का समर्थन नहीं करता।" जव घर गया, एकाकी बैठकर ठंढे दिक-दिमाग से सोचा तो अपनी गलती मालूम हुई, पश्चात्ताप हुआ कि जरा-सी बात पर संफिसर से क्यों बिगाड़ लिया। पर अब क्या हो सकता था ? अब तो उसका नाम : कट चुका होता है, आचरण पुस्तिका में उसके विरुद्ध टिप्पणी लिखी जा चुकी होती है। यदि कदाचित् आफिसर से माफी मांगने और इस्तीफा वापस लेने पर वह नौको मिल भी जाए तो आगामी वेतन वृद्धि खतरा पैदा हो सकता है, साथियों की नापसंहगी या उपेक्षा के पात्र बन चुके होते हैं।
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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