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संभिन्नचित्त होता श्री से वंचित :१ १२७ कार्यों में मोड़ता है तो युद्ध में कदापि विजयश्रय पा नहीं सकता। वह चित्त की पूर्ण एकाग्रता एवं तन्मयता से अपनी जिम्मेदारी के कार्य का विश्लेषण करता रहता है, तब कहीं विजय का श्रेय उसे मिल पाता है। अगर सेनापति युद्ध के दौरान अनेक उतार चढ़ाव आने पर बार-बार अपने चित्त को डांवाडोल करता रहे, बात बात में वहां से भागने-उखड़ने लगे तो उसे विजयश्री के बदले पराजय का मुंह देखना पड़ता है।
जैसे संग्राम में सेनापति को संभिन्नचिजता छोड़कर एकाग्रता, तन्मयता और संलग्नता के साथ ठीक संचालन करना पड़ता है, तभी वह विजयश्री पाता है, वैसे ही जीवन-संग्राम में विजयश्री प्राप्त करने के लिए भी संभिन्नचित्तता छोड़कर चित्त की एकाग्रता और संलग्रता अपेक्षित है। इसीलिए किसी कवि की ये पंक्तियां कितनी प्रेरणादायक हैं
जीवन है संग्राम बंदे । जीवन है संग्राम । जन्म लिया तो जी ले बन्दे ! उर का क्या काम ? बन्दे... जो लड़ता कुछ करता बन्दे ! को उरता सो मरता बंदे ! जो रोना था, क्यों आया तू, जीवन के मैदान । बन्दे...
संभिन्नपित्त का दूसरा अर्थ : टूटा हुआ चित्त संभिन्नचित्त का दूसरा अर्थ है--टूटा हुआ चित्त। टूटे हुए चित्त का अर्थ है-जीवन संग्राम में चलते-चलते कहीं थफेला लगा विपत्ति का, कभी आफत की आँधी आई, या कभी कर्जदारी की नौबत आ गई, या जरा-सा व्यापार में घाटे का झींका आ गया, किसी दृष्टजन का वियोग हो गया, अथवा कोई इष्टवस्तु हाथ से चली गई, उस समय अपने लक्ष्य से हट जाना, निराश और हताश होकर सब कुछ छोड़-छाड़कर बैठ जाना, किंकर्तव्यविमूढ़ होकर चित्त को निराशा की भट्टी में झौंक देना। ये और इस प्रकार की परिस्थितियों में चित्त टूट जाता है। चित्त की जो तेजस्वी शक्ति थी, वह नष्ट हो जाती है। इस प्रकार टूटे हुए चित्त का व्यक्ति अपने पर आई हुई विपत्तियों को अपने पर हावी होने देता है, वह आपत्ति की सम्भावना अथवा उसके आने पर घबराकर उद्विग्न और अशान्त हो पाता है, उसका समग्र जीवन निराशापूर्ण, कटुता से भरा और दुःखित हो जाता है।
चित्त जब टूट जाता है तो वह अशान और उद्विग्न हो जाता है। ऐसे टूटे चित्त वाले व्यक्ति के भाग्य से जीवन के सारी सुरुष-मुविधा, सम्पत्ति और विभूति रूठ जाती है। उसके विकास और उन्नति की सारी साभावनाएँ काफूर हो जाती हैं। निराशा, विषाद और आर्तध्यान उसे रोग की तरह घेरे रहते हैं। न उसे भोजन अच्छा लगता है, न नींद आती है और न किसी के साथ सम से बातचीत करना सुहाता है। वह जरा-जरा सी बात पर कुढ़ता, खीजता चौर चिढ़ता है। बड़ी-बड़ी अप्रिय एवं अस्वास्थ्यकर कुण्ठाओं से उसका चित्त भरा रहता है।