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संभिन्नजित होता श्री से वंचित :१ १२६ अपनी तुनुकमिजाजी के कारण जरा सी बात वत बतंगड़ बनाकर कितनी हानि कर ली। यही तो संभिन्नचित्त से बहुत बड़ी हानि है।
और लिजिए तुनुकमिजाजी के दौर ! तुनुकमिजाज एक दिन घर में रात को देर से पहुंचे। इस पर उसकी पत्नी ने जरा-सी शिकायत कर दी कि आपको दूसरे की तकलीफ-आराम का तो जरा भी ख्याल नहीं है। कितनी रात बीते तक मैं खाना लिए बैठे रहूँ। घर के और भी तो काम निपटाने होते हैं। बस, तुनुकमिजाजी का दौरा शुरु हो गया---'पत्नी बड़ी धृष्ट है। मेरे प्रति अपनापन ती बिल्कुल ही नहीं। खाना क्या बना लेती है, मानो पहाड़ तोड़ देती है। जरा-सा बैठना पड़ गया तो इसकी कोमल कली-सी देह छिल गई। मेरा अपने दोस्तों के साथ बैठना तो बड़ो फूटी आँखों नहीं सुहाता। मेरे प्रेम
और परिश्रम को तो कोई कीमत ही नहीं। क्या मैं इसका खरीदा हुआ गुलाम हूं जो इसके इशारों पर नाचूँ, इसके संकेतों पर कहां जाऊं-आऊ, उर्ले-बैटूं। घर में आऊंगा ही नहीं तो रोज-रोज की खटखट समाप्त हो जायेगी। बाजार बहुत पड़ा है, होटलें क्या कम हैं ? कहीं भी चाहूँगा खा लूंगा।' बात कुछ भी नहीं थी, पी की शिकायत भी यथार्थ और उचित थी, लेकिन तुनुकमिजाजी ने तिल का ताड़ बना दिण। घर में खाना बन्द हो गया। पत्नी से रूठ गये। होटल में खाकर पेट भरने का कार्यक्रम प्रारम्भ हो गया। पैसे के साथ स्वास्थ्य की भी बरबादी होने लगी। पली बेचारी मन ही मन दुखित होती, पर करती क्या ? अच्छे से अच्छा खाना बनाकर प्रस्तुत करती पर खाते ही नहीं, उत्तेजित होकर थाली फैंक देते। बच्चों के कारण खाना बनाना पड़ता था, वरना बेचारी उपवास भी करती। रो-झीककर थोड़ा-सा बेमन से खा भी लिया तो वह धंग में क्या लगता।
बच्चों, पड़ोसियों और देखने-सुनने वालों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ? लोगों की नजरों में ओछे, सनकी, जिद्दी तथा झक्की सिद्ध हो रहे हैं। इसकी कोई परवाह नहीं। होटल ने जेब खाली कर दी, पेट का बुरा हाल हो गया, तब जाकर श्रीमान की खुमारी उतरी। तब अपनी गलती के लिए पश्चात्तापपूर्ववर पत्नी से क्षमा मांगते हैं। पत्नी मान जाती है। परन्तु, धन, स्वास्थ्य और मन की क्षति हुई, प्रतिष्ठा को हानि पहुँची, यह तुनुकमिजाजी कितनी मंहगी पड़ी।
ये तुनुकमिजाजी लोग व्यर्थ ही खर्च करके दरिद्र हो जाते हैं, फिर भी अपना फटाटोप करना नहीं छोड़ते।
कुछ संभिन्नचित्त लोग झक्की या धुनी होते हैं। शक्की आदमी को कुछ न कुछ विचित्र बात करते रहने की धुन सवार होती है। आपने देखा होगा कि कुछ लोग बार-बार एक ही काम को किये जाते हैं। एक महिला को झक सवार हो गई थी कि वह घर में बार-बार झाडू लगाती थी। यदि कोई बच्चा या बड़ा तनिक-सी गंदगी कर देता तो वह बुरी तरह उखड़ पड़ती थी।
मैंने एक झक्की को देखा है, जो टट्टी जाने देत बाद बार-बार मिट्टी से अनेक बार अपने हाथ धोता था। बीसियों बार मिट्टी से हाथ धोने के बाद भी वह साबुन से हाथ