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________________ १२४ आनन्द प्रवचन : भाग ६ (४) व्यग्र या बिखरा हुआ चित्त या असंलगचित्त (५) अव्यवस्थित चित्त (६) अस्थिर चित्त (७) असंतुलित चित्त अब हम क्रमशः इनके अर्थों पर विचार करेंगे और साथ ही गौतम ऋषि के बताये हुए सूत्र के साथ उसकी संगति बिठाने का प्रयत्न करेंगे। संभिन्नचित्त का प्रथम अर्थ : भग्नचित्त संभिन्नचित्त का प्रथम अर्थ है-भग्नचित्ता यानी भागा हुआ, उखड़ा हुआ या विक्षिप्तचित्त। जिसका चित्त भग्न होता है, वह प्रमय; अवांछित कल्पनाएँ किया करता है। मनुष्य का चित्त प्रायः मधुमक्खियों के छई गए छत्ते की तरह है। वह बार-बार नई नई कल्पनाएं और विकल्प उठाता रहता है। कल्पनाओं की यह भिनभिनाहट मनुष्य के चित्त को घेर लेती है और व्यर्थ की। ऊलजलूल कल्पनाओं से घिरा हुआ मनुष्य तनाव, व्यथा और अशान्ति से जीता है। जीवन को यथार्थ जीवन को तथा उसके उद्देश्य और लक्ष्य को जानने के लिए झीन की तरह शान्तचित्त चाहिए, जिसमें कोई भी विक्षोभ या व्यग्रता की लहर न हो। ऐग भग्नचित्त को लेकर आप यथार्थ रूप से कछ जान सकें, या पा सकें, यह सम्भव नहीं। यह दशा चित्त की रुग्ण दशा है। इसमें चित्त दर्पण की तरह निर्मल, स्वच्छ एवं शुद्ध नहीं होता, जिस पर सद्ज्ञान प्रतिबिम्बित हो सके। एक युवक था। उसने एक बहुत बड़े धनिक को देखकर धनवान बनने का विचार किया। कई दिनों तक वह कमाई में लगा रहा, कुछ पैसे भी कमा लिए। इसी बीच उसकी भेंट एक विद्वान् से हुई। विद्वान् ती सर्वत्र प्रतिष्ठा और प्रशंसा होती देख उसने कल्पना की कि मैं विद्वान् बन जाऊँ तोडीक रहेगा। दूसरे ही दिन वह कमाई छोड़कर अध्ययन करने में लग गया। अभी कुष्ठ लिखना-पढ़ना सीख ही पाया था कि उसकी भेंट एक संगीतज्ञ से हुई। संगीत से लगगों को अधिक आकर्षित होते देखकर उसे भी संगीतज्ञ बनने की धुन लगी और उसो दिन से पढ़ाई छोड़-छाड़कर वह संगीत सीखने लगा। उसके बाद एक दिन उसने एक नेताजी का धुंआधार भाषण सुना। लाखों आदमियों की भीड़ उनकी सभा में देखकर उसका संगीत सीखने का विचार बदल गया और नेता बनने की फिराक में लगा। नेताजी के साथ-साथ वह जगह-जगह घूमने लगा। काफी उम्र बीत गई। वह युवक धब प्रौढ़ क्या, बूढ़ा हो गया, लेकिन न तो वह धनिक बन सका, न विद्वान् और न ही वह संगीतज्ञ बन पाया और नेता भी न बन पाया। तब उसे अपनी असफलता पर बड़ा दुख हुआ। एक दिन उसे एक महात्मा मिल गए। महात्मा से उसने अपनी सारी व्यथा-कथा
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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