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संभिन्नचित्त होता श्री से वंचित १ १२३
वास्तव में जिस व्यक्ति को लक्ष्मी मिलती है, वह पुण्यशाली होता है, परन्तु वही व्यक्ति पुण्यशाली है, जो नैतिक एवं पवित्र दिशा में अपनी प्रवृत्ति चलाता है। संतों का कथन है—यह नीति-धर्म से प्राप्त लक्ष्मी भोग विलास के लिए, ऐशो-आराम के लिए या दुर्व्यसनो में खर्च करने के लिए नहीं है। जो व्यक्ति प्राप्त लक्ष्मी का दुरुपयोग करता है, उसके पास लक्ष्मी टिकती नहीं कदाचित् कुछ दिन टिकती भी है तो वह अभिशाप रूप बन जाती है, सुख शान्ति के बदले वह दुःख दर्द बढ़ाती है। दान-पुण्य या परोपकार के कार्यों में निश्कांक्ष रूप से लक्ष्मी का उपयोग होने पर ही वह स्थिर रहती है। जो लक्ष्मी दान, पुण्यादि सत्कार्यों में व्यय की जाती हैं, वही प्रशंसनीय और वृद्धिंगत होती है । सदाचार से ही लक्ष्मी टिकती है। वैदिवत् पुराण में वर्णन है कि लक्ष्मी ने इन्द्र के पूछने पर कहा था- "देवराज ! जब किसी राष्ट्र में प्रजा सदाचार खो देती है, तो वहाँ की भूमि, अन्न, जल, अग्नि कोई भी मुझे स्थिा नहीं रख सकते। मैं लोकश्री हूँ। मुझे लोक सिंहासन चाहिए, व्यक्ति के सदाचारी मानस में ही मैं अचल निवास करती हूं।" अब आइए महर्षि गौतम के जीवन सूत्र पर महर्षि ने एक सूत्र में सभी नितिकारों, धर्मशास्त्रों के मंतव्य का निचोड़ का दिया
'संभिन्नचित्त भाए अलच्छी'
'जो संभिन्नचित्त होता है, उसके पास लक्ष्मी नहीं रहती, अलक्ष्मी दरिद्रता का ही वास रहता है।
संभिन्नति में सभी अयोग्यताओं का समावेश
संभिन्नचित्त व्यक्ति का विशेषण है। संभिन्नचित्त में पहले बताई हुई सभी अयोग्यताएं - लक्ष्मी प्राप्त न करने या उसके स्थिर न रहने की बातें समाविष्ट हो जाती हैं। क्योंकि जिसका चित्त संभिन्न होता है, उसका संशयशील, अकर्मण्य, अविश्वासी, आलसी, चित्त में नाना कल्पनाएं करके हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने वाला विक्षिप्त-सा, गंदा, अव्यवस्थित एवं अनिश्चयी व्यक्ति होना स्वाभाविक है। इसलिए गौतम ऋषि ने सौ बातों की एक बात कह दी - संभिन्नचित व्यक्ति के पास लक्ष्मी नहीं पटकती, उसे सदा दरिद्रता ही घेरे रहती है।
संभिन्नचित्त : विभिन्न अर्थों में
आइए अब 'संभिन्नचित्त' शब्द पर विचार कर लें। संभिन्नचित्त शब्द बहुत ही अर्थगंभीर है, महत्वपूर्ण है। मेरी नम्र मति गि 'संभिन्नचित्त' शब्द के कम से कम साथ अर्थ फलित होते हैं।
(१) भग्नचित्त या विक्षिप्तचित्त
(२) टूटा हुआ (निराश) चित (३) रूठा हुआ या विरुद्ध चित्त