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________________ १२२ आनन्द प्रवचन भाग ६ लक्ष्मी सर्वतोमुखी होकर रहती है। व्यावहारिक जीवन में लक्ष्मी का निवास कहां है ? यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। पुराणों में लक्ष्मी और इन्द्र के संवाद का वर्णन मिलता है। वहाँ इन्द्र के पूछने पर लक्ष्मी स्वयं अपने निवास के सम्बन्ध में बताती है-: गुरवो यत्र पूज्यन्ते, यत्र माणी सुसंस्कृता अदन्तकलहो यत्र तत्र शक्र ! वसाम्यहम् । "जहाँ गुरुजनों की पूजा ( सत्कार सम्मान) होती है, जहां सुसंस्कृत सभ्य वाणी है, और जहाँ दन्तकलह (लड़ाई झगड़ा) नहीं है, हे इन्द्र ! वहीं में (लक्ष्मी) निवास करती हूं।' इसके विपरीत जहाँ बड़ों-बुजुर्गों का सम्मान नहीं होता, जिस घर में कटु एवं असभ्य वाणी है, और जहाँ आए दिन महाभारत होता है, वहाँ लक्ष्मी नहीं टिकती। इसी प्रकार आलसी, अकर्मण्य एवं संशयशील के पास भी लक्ष्मी नहीं फटकती। लक्ष्मी कहाँ नहीं रहती ? उसके उत्तर में भोज प्रबन्ध (२०) में कहा गया है— अतिदाक्षिण्ययुक्तानां शक्रितानां पदे पदे । परापवादभीरूणां, दूरतो धान्ति सम्पदः । जो आदमी अत्यन्त सयाने होते हैं, पद-गद पर शंका करते हैं, एवं लोक निन्दा (लोकों के द्वारा सी बात की भी की गई आकोचना) से डरते हैं, उनसे सम्पत्तियां दूर ही रहती हैं। चाणक्य नीति (१५/४) में श्रीहीनता के सम्बन्ध में कहा गया है— कुचैलिनं दन्तमलापधारिणं, बासिनं निष्ठुर भाषिणं च । सूर्योदये वास्तमित्र शयानं, विमुञ्चति श्रीर्यदि चक्रपाणिः । 'जो मैले कुचैले गंदे कपड़े रखता है, दांतों पर मैल जमा किये रखता है, बहुत अधिक खाता है, कठोर वचन बोलता है और सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सोया पड़ा रहता है, लक्ष्मी उसका परित्याग कर देती है,' मले ही वह चक्रपाणि-विष्णु ही क्यों न हो । ' इससे ध्वनित होता है कि जो आलस्य शिरोमणि है, प्रमादशंकर है, दिन-रात पड़ा रहता है, पेटू है, कोई भी अच्छा कार्य या जिम्मेदारी का नैतिक कार्य करने को जी नहीं चाहता, कहने पर काटने को दौड़ता है, ऐसे व्यक्ति के पास लक्ष्मी आएगी और टिकेगी भी क्यों ? उसकी श्रीहीनता तो उसके व्यवहार एवं रहन-सहन से ही स्पष्ट है। उसके जीवन में शोभा या तेजस्विता आएगी ही कहाँ से जो बात-बात में शंकाशील है, अत्यन्त सयानापन करता है, या जो आलोचना से कतराता है ?
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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