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________________ १०४ आनन्द प्रवचन : भाग ६ यही बात दशवकालिक सूत्र की चूर्णि (9/98) में कही गई है इहेवऽधम्मो अयसो भकित्ती... संभिन्नवित्तस्स य हेरी गई। -वृत्त-चरित्र से भ्रष्ट पुरुष का इस लोक में अपयश और अपकीर्ति होती है तथा परलोक में अधोगति होती है। कुशील सेवन से व्यक्ति की कीर्ति किस प्रकार नष्ट हो जाती है और उसकी कैसी विडम्बना होती है, इसके लिए एक ऐतिहासिक उदाहरण लीजिए--- धारा नगरी में मुँजराजा राज्य करते थे। उनके पास राज्य वैभव आदि सभी प्रकार का ठाठ था। एक बार किसी शत्रु राजा के साथ उन्हें युद्ध करना पड़ा। इस युद्ध में उनकी हार हुई। शत्रु राजा ने मुंजराजा को बाँधकर अपने राज्य में नजरबंद कैद कर दिया। उनको भोजन कराने के लिए वह राजा प्रतिदिन एक दासी के साथ थाली में परोसकर भेजता था। दासी अत्यन्त रूपवती थी। मंजराजा उसके रूप पर मोहित हो गए और उसके साथ दुराचार सेवन करने लगे। इधर भोजराजा को मुंजराजा के नजरबंद कैर का पता लगा तो उसने धारा नगरी में कैदखाने तक एक सुरंग खुदवाकर मुंजराजा वी गुप्त रूप से सूचित किया कि इस सुरंग-मार्ग से धारा नगरी आ जाओ, उसका दरवाजा अमुक जगह है। दासी जब भोजन देने आई तो मुंज ने उसे कहा- "मैं इस सुरंग मार्ग मे जाऊँगा, अगर तुम्हें मेरे साथ आना हो तो चलो।" इस पर दासी ने कहा--"ठहरो, मैं अपने आभूषण ले आती हूँ। फिर हम चलेंगे।" लेकिन दासी जब आभूषण लेकर बहुत देर तक नहीं आई तो मुंज ने सोचा-"हो न हो, किसी को मेरे जाने का पता लग गया है। अतः अब यहाँ से झटपट चल देना चाहिए। यों सोचकर मुंज चल पड़ा। इत में दासी आ गई, उसने मुंज को जाते देखा तो सोचा-“मुझे छोड़कर चला गया है किताला विश्वासघाती है।' अतः दासी जोर से चिल्लाई---'दीडो दौड़ो, मुंज भाग रहा है।' यह सुनते ही राजपुरुष दौड़कर आए। उन्होंने मुंजराजा का सिर ऊपर से पकड़ लिया, उपर नीचे से मुंज के अपने आदमियों ने उसके पैर पकड़ लिए। दोनों तरफ खींचातान होने लगी, तब मुंज ने अपने आदमियों से कहा- "तुम लोग पैर खींचोंगे तो शत्रु ऊपर से #रा सिर काट डालेगा। अतः तुम पैर छोड़ दो।" यह सुनकर वे आदमी चले गए। राजा ने मुंज को गिरफ्तार कराकर एक हाथ में खप्पर देकर नगर में भीख माँगने का आदेश दिया। एक घर में जब भीख मांगी की गृहिणी चर्खा कात रही थी उसकी चरड-चरड आवाज के कारण उसने कुछ सुना नहीं । तब मुंज ने कहा--- १रे यंत्रक ! मा रोदीर्यकर भ्रामितोऽनया। राम-रावण-मुंजायाः, स्त्रीभिः के के न प्रामिता। अरे चर्खायंत्र ! इस स्त्री ने मुझे फिराया है, यह सोचकर मत रो। स्त्रियों ने राम, रावण और मुंज आदि कई मनुष्यों को घुमाया है। धागे चला तो एक घर में एक महिला ने घी से तर रोटी आधी तोड़कर दी। उसे देख मुंज ने कहा
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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