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________________ क्रुद्ध कुशील पाता है अकीर्ति ६७ एक बार एक भाई दिल्ली गये। यहाँ वे अपने मित्र के साथ राजघाट महात्मा गांधी की समाधि पर गए। उस मित्र की छोटी लड़की ने सबसे पूछा- "क्या आप जानते हैं कि इस समाधि के नीचे क्या गार हुआ है ?" इस लड़की का प्रश्न सुनकर सभी आश्चर्य में पड़ गए। एक विचारक ने कहा- "इस समाधि के नीचे महात्मा गांधी की तीन प्रिय वस्तुएं गाड़ी हुई हैं—गत्य, अहिंसा, सादगी। इन तीन वस्तुओं पर बापूजी की समाधि बनाई गई है।" क्या आप ऐसा करने का आशय समझे ? महात्मा गांधी के अधिकांश पुजारी, अनुयायी या भक्त लोग उनकी समाधि के पास आकर बैठते हैं, उन्हें स्मरण करते हैं, लेकिन उनको जो तीन बातें अत्यन्त प्रिय थीं, उन्हें वे जीवन में स्मरण करना एवं उन पर आचाण करना नहीं चाहते, इसलिए समाधि के नीचे गाड़ रखी हैं कि कहीं वे बाहर जन-जीवन में न आ जाएं। आजकल लोग प्रायः अपने-अपने महापुरुषों के गुणगान करके, उनकी कीर्ति का गान करके ही रह जाते हैं, उनके द्वारा जीवन काल में आचरित सत्कार्यों या धर्माचरणों को अपनाकर उनकी कीर्ति की परम्परा को आगे नहीं बढ़ाते। कई लोग उनकी कीर्ति का सिक्का भुना-भुनाकर स्वयं कीर्ति पाने का प्रयल करते हैं। परन्तु ये सब कीर्ति पाने के प्रयल न्यायोचित नहीं हैं। कई लोग अपने मृत पुरुषों की कीर्ते बढ़ाने के लिए छत्री, समाधि या कोई स्मारक बनाते हैं, अथवा उनकी कब्र पर नि कुछ सुवाक्य खुदवाते हैं। परन्तु ये सब उपाय स्थायी एवं वास्तविक कीर्ति के सूचक नहीं हैं। मनुष्य की वास्तविक कीर्ति तो उसकी सत्कृतियों से सुगन्ध की तरह स्वतः लती है। बतोर्ति की आकांक्षा : साधना में बाधक किसी भी प्रकार की आकांक्षा धर्माचरण या तप की साधना में बाधक है। जैन शास्त्र जगह जगह पर इस बात को दोहराम हैं। कीर्ति की आकांक्षा से प्रेरित होकर जप, तप, धर्माचरण या सामायिकादि साधना करने का स्पष्ट निषेध किया गया है। जैसा कि दशवैकालिकसूत्र (६/४) में कहा है। नो कित्तिवष्णसहसिलोगङ्गाठयाए तवमहिटिज्जा। नो कित्तिवण्णसहसिलोगळ्याए आचारमहिट्ठिजा। इसी प्रकार उच्च साधकों के लिए भग्नान महावीर ने फरमाया जसंकिति सिलोगं च, जा य बंदण-पूयणा । सबलोयंसि जे कामा विजं परिजाणिया।' यश, कीर्ति, श्लाघा, बन्दना और गुना तथा समस्त लोक में जो कामभोग हैं, उन्हें अहितकर समझकर त्यागना चाहिए। यह ठीक है कि कीर्ति की लालसा पा कामना नहीं होनी चाहिए। दान, सेवा, १. सूत्र कृतांग ६/२२
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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