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________________ आनन्द प्रवचन : भाग १ प्रेरणा का स्त्रोत सदुपदेश मानव की आत्म-चेतना की जाति और विकास में सदुपदेशों का महान प्रभाव होता है। उपदेश के द्वारा पतित से पोतेत और विमूढ आत्माओं में भी आश्चर्य जनक परिवर्तन हो जाता है, ऐसे अनेक उदाहरण हम देखते हैं। भगवान महावीर के समय में रोहिणेय नामक एक बड़ा भारी चोर था। उसका पिता मरते समय रोहिणेय से वचन ले गया था कि "महादी) का उपदेश कभी नहीं सुनना।" पिता जानता था कि एक बार भी अगर यह स्वदेश सुन लेगा तो इस पाप मार्ग को छोड़ देगा। रोहिणेय ने जीवन में इस बात का पूरा ध्यान रखा। जिस स्थान पर भगवान ठहरते, वह उधर फटकता तक नहीं था। किन्तु एक बार विवश होकर उसे प्रभ के समवशरण के निकट से गजमा पड़ा। भगवान का प्रवचन चल रहा था अत: उसने अपने दोनों कानों में अंगुलियाँ डास्न ली और भागने लगा। ___ संयोगवश उसी समय उसके पैर में काँटा चुभ गया। ज्योंही वह कांटा निकालने के लिए झुका, भगवान के तीन मक्य उसके कानों में पड़ ही गये - "देवों की आँख टिमटिमाती नहीं, गले की फूलमाला कुम्हलाती नहीं तथा वे भूमि से ऊँचे रहते है।" उपदेश के ये वचन सुना लेने से रोहिणेय को दुख जरुर हुआ किन्तु वह इन बातों को भूला नहीं। एक बार वह पकड़ा गया और उस राजा श्रेणिक के सम्मुख लाया गया। पर बार-बार पूछने पर भी उसने अपराध स्वीकार नहीं किया। श्रेणिक का मन्त्री अभय कुमार बड़ा चतुर था। उसने अपराधा स्वीकार कराने के लिए प्रपंच स्वा। पहले तो रोहिणेय को क्षमा करके मुक्त कर दिया, फिर खूब सत्कार सहित ऐसा भोजन कराया जिससे वह बेभान हो गया। तत्पश्चात् उसे दिव्य वेश पहना कर दिव्य सामग्री से सुसज्जित भवन में सुला देया। मूर्छा टूटने पर चोर ने अपने को मानो दिव्यलोक में पाया। देखा कि अप्सराएँ नृत्य कर रही हैं तथा कह रही हैं - "महाभाग! अपने महान पुण्य के प्रभाव से आय देवलोक में पधारे हैं, कहिए पूर्वभव में आपने क्या सुकृत किये थे? । रोहिणेय को वास्तव में ही अपने न बन जाने का भ्रम हुआ और वह पूर्वजन्म में चोरी आदि की बातें कहने जा ही रहा था कि उसे भगवान महावीर के उपदेश की तीनों बातें स्मरण हो आई। देवताओं के लिए कही गई उन तीनों बातों में से एक भी उसके सामने रहे हुए देखि-देवताओं में न मिलने से वह समझ गया कि यह देवलोक झूठा है। और यह सब अभयकुमार का जाल है। अत: उसने चोरी की बात सत्य कहने के बजाय दान-गण्य आदि की बातें गढ़कर कह दी। परिणामस्वरूप उसे मुक्त कर दिया गया। किन्तु इससे रोहिणेय का जीवन बकल गया। उसने सोचा - "प्रभु के
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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