SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आनन्द प्रवचन : भाग १ चाहिए। अनेक प्रकार के उत्तम विचारों में से मुख्य तीन हैं, जिन्हें हम श्रावक के तीन मनोरथों के नाम से पुकारते हैं। एक पद्य में वे स्पष्ट किये जाते हैं - "आरम्भ परिग्रह तजि करी, पंच महाव्रत धार। अन्त समय आलोयणा, कसै संथगो सार॥ पद्य का अर्थ सरल और स्पष्ट है। आशा है आप समझ ही गए होंगे। ये सुन्दर मनोरथ प्रत्येक श्रावक को अहर्निश अपने मन में रखने चाहिए कि "मेरे जीवन में वह मंगलमय दिन कब आएगा, जबा मैं समस्त पर-पदार्थों पर से आसक्ति हटाकर पंच-महाव्रतों को धारण करूँगा। अर्थात् मुनिवृत्ति को अंगीकार करूँगा। तथा जीवन के अन्तिम समय में अपने गुरूदेव के समक्ष समस्त अपराधों, दोषों एवं भूलों की आलोचना करके समाधिमरण को राप्त होऊँगा।" ये दिव्य मनोरथ मोक्ष रूपी महल में प्रविष्ट होने के लिए सीढ़ियों के समान हैं। दूसरे शब्दों में गुणस्थानों की श्रेणी पर उत्तरोत्तर आरूढ़ होने के लिए परमाकायक हैं। यह भावनाएँ हैं परमार्थ की। इनमें कहीं घाटे या नुकसान का भय नहीं है। यह रोजगार पूर्ण रूप से नफे ही नफे ना है। इसी की दुकान यहाँ कुशालपुरा में खली है। जिस नफे के व्यापार के लिए लोग तरसते हैं, एक दिन के लिए अगर ऐसा संयोग मिल जाय तो हर्ष से पहले नहीं समाते। वही संयोग आपको चार महीनों के लिए मिल गया है। क्या इसका लाभ आप उठाना चाहते हैं? अभी तो - "माल बिके छे थोड़ो जिण सं. पूरो नहिं चले। आवेला कोई उत्तम प्राणी, माल डानसां पल्ले। समझे आप? सन्तों ने यहाँ दुकान तो खोल दी है किन्तु बिक्री अभी जितनी होनी चाहिए. नहीं हो रही है। इस तरह कैसे काम चलेगा? लगता है कि कभी कोई उत्तम पुरुष आएगा और वदि यह माल खरीद कर ले जाएगा। सन्तों की दुकान में कैसा माल होता है, इस विषय में महाराष्ट्र के प्रसिध्द सन्त तुकाराम ने मराठी भाषा में कहा है - राम नाम हें चि मांडिले दुकान, आहे घनो वाण घ्यारे कोणी॥१॥ - यह राम नाम की दुकान है और इसमें तरह-तरह के 'वाण' अर्थात् नमूने हैं। अद्भुत माल जिस प्रकार आपकी दुकानों में भिन्न-भिन्न प्रकार के नमूने होते हैं, उसी प्रकार हमारी दुकान में भी अनेक प्रकार के नमूने हैं। यथा - भगवान का नाम स्मरण करो, सत्संगति करो, भक्ति करो, दया पालो, सत्य बोलो, किसी का धन मत छीनो अथवा चुराओ मत, दृष्टि में विकाऽ मत आने दो, शराब मत पीओ,
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy