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________________ [७६] • लेखा -जोखा जगह भर जाती है और पदार्थोक बिकते ही दुकान खाली लगने लगती है। हमारी दुकान प्रत्येक समय और प्रत्येक काल में भरपूर रहती है। ज्यों-ज्यों माल बिकता है, त्यों-त्यों उसके स्थान पर स्वयं ही नपा आता-जाता है। दृष्टिगोचर न होने पर भी हमारी दुकान का माल इस लोक मैं तो यश, प्रतिष्ठा, सुख और संतोष प्रदान करता ही है, अपितु परलोक में भी आत्मा ने साथ चलता है। दो पहाडे बंधुओ! आप संसारी लोगों के विषा में विशेष क्या कहा जाय? आपका जो पाठ है, पहाड़ा है या सबक है वह शठ के अंक का है और भगवान की दुकान, जिसे हम चलाते हैं, उसका पहाड़ाही के अंक का है। आप शायद समझें नहीं होंगे। मैं इन्हें ही समझाने का प्रयत्न कर रहा हूँ। बताइये, आपका पहाड़ा पहले सुनाऊँ या हमारा ? हमारा नौ का अंक है। नौ एकम नौ। संख्या वही नौ है। नौ दूनी अट्ठारह। अठारह कैसे लिखे जाते है? एक और आदर अंब इनको जोड़ो - एक और आठ नौ। वही अंक रहा। अब नौ ती सत्ताईस। दो और सात नौ। चार नौ छत्तीस। तीन और छ: नौ। पाँच नौ पैंतालीस। चा और पाँच भी नौ ही हए। छ: नौ चौवन। पाँच और चार भी नौ होते हैं। सारा नम वेसठ। छ: और तीन नौ। आठ नवा बहत्तर। सात और दो नौ। नवे नवे क्यासी। आठ और एक फिर नौ हो गये। तथा दस नौ नब्बे। यहाँ भी नौ ही है। देखा आपने? कहीं पर भी घाटा या नुकसान नहीं हुआ। आत्मोन्नति किंवा परमात्मा बनाने का पाठ नौ के अंक के समान है। वस्तुतः यहाँ पर अहिंसा है, सत्य है, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह है लथा कषायों का अभाव है वहाँ नुकसान कैसा? नफा ही नफा तो दिखाई देता है। तथा वह भी सदा बढ़ता ही चला जाता है। छब्बे बनने चले पर दुबे रह गये अब आपका पहाड़ा सुन लीजिये। जिसमें घाटा ही घाटा है। कभी अगर एकदम नफा हो भी गया तो पुन: गिरावट प्रारम्भ हो जाती है और व्यापार जहाँ का तहाँ रह जाता है। आपके पाठ का अंक क्या है? आठ का। आठ एक आठ। आठ दूनी सोलह। सोलह कैसे लिखे गए है? एक और छः। जोड़ा तो सात हुए, एक कम हो गया। आठ की जगह सात रह गये। आप दिन-रात मेहनत करते हैं, प्रयत्न करते रहते हैं बढ़ाने का, पर माल कम हो जाता है। वैसे आपको कहा जाय कि दस मिनिट माला फेरिये, ती कहते हैं फुरसत नहीं मिलती, काम अधिक है। संतों के समागम और उपदेश श्रवण के लिए आपको समय नहीं रहता। फिर आप बढ़ेंगे कैसे? घाटा ही तो होगा। जैसे कि आठ का पहाड़ा शुरू करते ही एक की कमी आ गई।
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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