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________________ • लेखा -जोखा [४] [७४] [७]] JARAMATA ( लेखा - जोखा ) - धर्मप्रेमी बन्धुओ! शीलवती माताओ एवं बहिनो !! आज के प्रवचन में अभी-अभी मुते श्री जी ने आपको बताया है कि भगवान महावीर विचरते हुए आमलकप्पा नगा में पधारे तथा नगर के राजा, राज्य परिवार के व्यक्ति और वहाँ की सम्पूर्ण जनता वीर प्रभु के दर्शनार्थ उमड़ पड़ी। संत महिमा बन्धुओ, विचारणीय बात यह है वि अवतारी पुरुषों के दर्शन और उपदेश श्रवण से क्या लाभ है? अवतारी एवं संला पुरुषों के दर्शन की महिमा का वर्णन शब्दों के द्वारा नहीं किया जा सकता। अर्थात् सन्त-दर्शन का महत्त्व अवर्णनीय है। प्रथम तो निर्मल हृदय रखने वाले व्योके को सन्तों के दर्शन एवं वंदन से आत्मिक शांति का अनुभव होता है। दूसरे संत समागम का प्रथम चरण संत-दर्शन ही है। दर्शन के बिना समागम का अवसर नहीं मिल सकता। महापुरुषों के समागम का महत्त्व बताते हुए कहा गया है :'महत्संगस्तु दुर्लभोऽगम्योऽमोघश्च।' - नारदभक्ति सूत्र - महापुरुषों का संग दुर्लभ, अगय और कभी भी व्यर्थ न जाने वाला होता है। __संतों के समागम से ही मनुष्य का बौध्दिक एवं आत्मिक विकास होता है तथा अज्ञानान्धकार के नष्ट होने से सन्मार्ग का ज्ञान होता है। ज्ञानी एवं उत्कट दर्शनाभिलाषी व्यक्ति को तो अगर किसी विशेष कारणवश नगर में पधारे हुए मुनि का दर्शन प्राप्त न हो सके और उसके लिए उसे तीव्र और आन्तरिक पश्चात्ताप हो तो वह भी देव-गति के बंध का कारण बनता है। कहने का अभिप्राय यही है कि प्रत्येक व्यक्ति को यथासंभव संतों के दर्शन एवं प्रवचन-श्रवण का लाभ उठाना चाहिए। क्योंकि किताबी शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षक तो आज प्रत्येक गाँव व नगर में मिल जायेंगे किन्तु आत्म-स्वरूप व्ती जानकारी कराने वाले दिव्य-ज्ञान देने वाले संतजन विरले ही होते हैं तथा उनका समागम अत्यन्त कठिनाई से प्राप्त होता
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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