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________________ •[७३] आनन्द प्रवचन : भाग १ बालक रखिये हटक में, नी चढ़ाओ शीश, नित प्रति लाड़ लड़ाय ते मिास्त बिस्वा-बीस। बिगरत बिस्वा-बीस हाथ हार नहिं आवे, शोभत सभा न बीच उच्च पर कबहुँ न पावे। कहे गिरधर कविराय सुनो हवासी दरका, कोटि जतन करि राख फेर नोहें सुधरै लरका। पद्य में कहा है कि 'कोटि चतन करि राख' अर्थात् अपने बालकों के लिये कदम-कदम पर सावधान रहो, कवल प्यार-दुलार में ही उन्हें 'कोरा' मत रह जाने दो, उनकी आदतें बिगाड़ो मा, अन्यथा फिर पश्चात्ताप ही हाथ आएगा और आप अपने बालकों के हितचिन्तक नहीं, वरन् अनिष्टकारक साबित होंगे। अन्त में पुन: यही कहना है कि अगर आपको वास्तव में ही अपने पुत्रों को 'पुत्र-रत्न' बनाना है तो उनके लिए धार्मिकशाला अवश्यमेव खोलो, उनमें उच संस्कार डालो, उन्हें ज्ञानवान, गुणवान धौर धार्मिक बनाओ। तभी आपका पुत्र प्राप्त करना सार्थक होगा और आपके पुत्र के लिए आप जैसे पिता का प्राप्त करना। धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने पर ही आपकी सन्तान आचारनिष्ठ बन सकेगी तथा अपने धर्म को देदीप्यमान करती हुई उसे सुरक्षित रख सकेगी।
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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