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________________ • [ ६३ ] वह विद्या, विद्या नहीं है जो आत्मा को सर्वोच स्थिति की ओर न ले जाए। जो मुक्त न करे और उलटे कर्म-बन्धनों में कसे वह विद्या कैसी ? मुक्ति के समीप न ले जानी वाली शिक्षा वा शिक्षा के नाम पर दिया जाने वाला धोखा ही कहना चाहिये। मुक्ति की ओर ले जाने वाली शिक्षा नैतिकता एवं धर्म पर आधारित होती है। और वह शिक्षा जो नैतिकता के आधार पर खड़ी न की गई हो, बालक को उन्नति की ओर कैसे ले जा सकती है ? आनन्द प्रवचन भाग १ इसीलिये मेरी भावना है दिल यहाँ पर बच्चों को सची शिक्षा दिलाने का भी प्रबंध हो । धार्मिक शिक्षा ही सच्ची शिक्षा है। अगर आपने अपने बालकों को धार्मिक शिक्षण देकर संस्कारित नहीं किया तो वे आपकी प्रतिष्ठा, समाज की प्रतिष्ठा, और धर्म की प्रतिष्ठा कैसे रख सकेंगे" आप अपने बच्चों में संस्कार डालिये, उन्हें बताइये कि तुम्हें नीति पर चलना है, सच्चरित्र बनना है, व्यसनों से दूर रहना है, माता-पिता की तथा गुरु की आज्ञा मानना है, एवं धर्म की रक्षा करना है।' ऐसे संस्कार डाले जाने पर ही तो आपके बालक सचे मनुष्य, सच्चे श्रावक तथा सचे महापुरूष बन सकेंगे। होता क्या है ? आज के माता-पिता को तनिक भी फुरसत नहीं मिलती कि वे अपने बच्चों को सुबह-शाम थोड़ा वक्त निकालकर प्रशिक्षा दें, उन्हें उत्तम व्यवहार करने के तरीके बताएँ । और बिना घर उत्तम संस्कार डालें। केवल स्कूली शिक्षा पर निर्भर रहने का परिणाम क्या होता है, यह आप जानते हैं। वहाँ की शिक्षा दुर्गुणों को जन्म देती है। स्कूल में बालकों को कह जाता है अण्डे खाओ! मांस, मछली, खाओ! इससे ताकत आएगी आदि आई।" ऐसा कहने वाले इस बात का ध्यान नहीं रखते कि मांस-मछली खाने से ध्ररीर में बल वृद्धि हो भी जाएगी तो मन और आत्मा का क्या होगा ? शरीर को तो कितना भी पुष्ट किया जाय, वह इसी जन्म में एक दिन अग्नि में भस्म कर दिया जाएगा पर आत्मा के ऊपर जिन निबिड़ कर्मों की तहें जम जाएँगी उन छुटकारा कितने जन्मों में होगा ? शायद अनन्त जन्मों में भी नहीं। इसके अलगा शरीर की स्वस्थता क्या मांस, मछली और अण्डों पर ही निर्भर है ? जो व्योक्ते इन चीजों को खाना तो क्या देखना भी पसन्द नहीं करते, वे स्वस्थ नहीं रहते हैं क्या? देखा यही जाता है कि मांसाहारी व्यक्ति की अपेक्षा घी, दूध, ही तथा ऐसी ही अन्य चीजों का सेवन करने वाला शाकाहारी व्यक्ति शारीरिक और मानसिक दृष्टि से अधिक स्वस्थ रहता है तथा दीर्घायु होता है। उसका मन और वाणी सभी आकर्षक और प्रिय होते हैं। महात्मा कबीर ने अपनी सीधी साधी भाषा में यही बात कही है जैसा अन-जल खाइये, तैसा ही मन होय। जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी सोय ।। पद्य के शब्द बिलकुल सरल और साधारण हैं, किन्तु इनमें जो सत्य है
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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