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________________ • ऐसे पुत्र से क्या...? RAMMARIORITION ऐसे पुत्र सो क्या...? R ऐसे पुत्र से क्या....? प्रत्येक व्यक्ति की अभिलाषा यही होती है कि उसे संसार के समस्त सुख उपलब्ध हों। प्रचुर मात्रा में धन-सम्पत्ति हो, पत्नी सुलक्षणा हो, भाई स्नेहशील हो तथा पुत्र सुपुत्र हों। इस प्रकार की अनेक कामनाएँ उसके हृदय में बनी रहती हैं। किन्तु अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिये वह सही प्रयत्न नहीं करता। सुखों को चाहता है पर जिस रास्ते से सूख मिलते हैं उस रास्ते पर नहीं चलता। तब फिर सुख क्या यों ही मिल सकेंगे? हम तप करें नहीं, शील पाले नहीं, दान देवें नहीं और चाहें कि हमें सुथ मिल जाय तो कैसे मिलेगा? इसी प्रकार स्कूल में भर्ती हो नहीं, घर पर अभ्यास करें नहीं और आकांक्षा रखें कि प्रिन्सिपल, हैडमास्टर, वकील या बैरिस्टर बन चायँ तो क्या यह संभव हो सकेगा? कभी नहीं। रामचरित मानस में कहा गया है : करम प्रधान विश्व करि राखा । जो जस करइ सो तस फल चाखा।। मनुष्य जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल मिलता है। निंबोली बोकर आम प्राप्त करना चाहे तो यह नहीं हो सकता। आम प्राप्त करने के लिये आम की गुठली ही जमीन में डालनी पड़ेग। इसी प्रकार जिस प्रकार का फल मानव चाहता है उसके अनुसार ही उसे बीज बोना पड़ेगा। धन-प्राप्ति के लिये व्यापार, विद्वान बनने के लिये ज्ञानाभ्यास और पुत्र को सुपुत्र बनाने के लिये उसमें सुसंस्कारों का निक्षेप करना आवश्यक है। हमारी अभिलाषा इस वर्ष खुशालपुरा श्री संघ ने हमारा चातुर्मास कराया है, इस सुसंयोग के परिणामस्वरूप हमारे दिल में भावना और तीव्र इच्छा है कि इस क्षेत्र में बालकों के लिये पढ़ाई की व्यवस्था हो। व्यावहारिक पढ़ाई तो बच्चों की होती ही है पर धार्मिक पढ़ाई भी होनी चाहिये। उन्हें ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिये जो चरित्र को ऊँचा उठाकर आत्मा को शुध्द करे। हमारे शास्त्रों में कहा भी है: “सा विज्ञा या विमुक्तये।" - विद्या वही है जो मुक्ति प्रदान करे।
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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