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________________ आनन्द प्रवचन : भाग १ पता नहीं' पर, वकीलान वाले हैं। कवि श्री तिलोकऋषि जी म., जिन्होंने दस वर्ष की उम्र में दीक्षा ली और छब्बीस वर्ष तक कठोर संयम का पालन किया। छब्बीस वर्ष में उन्होंने असाधारण कार्य किया। साहित्य की रचना की, अनेक कविताओं का सृजन किया तथा सतत भ्रमण करके धर्म-प्रचार किया। अन्तिम चार वर्षों में तो महाराष्ट्र में भ्रमण करके आपने इतना काम किया, जितना हम बारह वर्षों में धुमकर भी नहीं कर सके। वे महान सन्त तिलोकऋषि जी म. कहते हैं - भाई! एक बात मेरी मानो! मनाई लेहि नेमिचंद्र, अर्थात नियम, व्रत त्याग प्रत्याख्यान आदि कुछ तो करो, जिससे आत्मा का कल्याण हो सके। बन्धुओ, आप को जब त्याग-नियम लेने के लिए कहा जाता है तो आप कह देते हैं - "महाराज! बनता नहीं" पर याद रखो, एक दिन कालूराम जी (काल) आने वाले हैं। वे किसी को भी छोड़ने वाले नहीं। चाहे कोई डॉक्टर हो, वकील हो, या इंजीनियर। किसी भी साल का कालचन्द्र जी को त्याग नहीं है। किसी ने सत्य कहा हैं डॉक्टर वैद्य बिचारे, लुकमान आदि हुए सारे, सभी मौत से हारे, बार जिस जिसी पे आया है। तू क्यों करता अभिमान, मौत सब आनेवाली हैं। हिन्दुओं में धन्वंतरी वैद्य और मुसलमानों में लुकमान हकीम। मैंने ऐसा भी सुना है कि ऐसे-ऐसे कुशल वैद्य हैं जो राजघरानों की रानियों और राजमाताओं को साक्षात न देख सकने के कारण उनके हाथ में एक डोरी पकड़ा देते थे और उसे दुसरे सिरे पर थाम कर नाड़ी परीक्षा कर लेते थे। लेकिन उन्हें मौत से हारना पड़ा। काल की एक पुकार पर ही इस संसार को त्याग कर चल देना पड़ा। इसी प्रकार प्रत्येक मानव को एकर दिन इस संसार को छोड़ कर जाना पड़ेगा! यहाँ की एक भी वस्तु उसके साथ जाने वाली नहीं है। साथ जाएगा तो केवल शुभ और अशुभ कर्मों का गठ्ठर ही। अशुभ कर्मों की यह गठरी विषयकषायों की तीव्रता से ही अधिकाधिक भारी होती है और आत्मा को पुन:-पुन: जन्म मरण करने के लिए बाध्य करती है। ये ही दे। कारण हैं, जिनके कारण मनुष्य मुक्ति की आकांक्षा रखते हुए भी उसे प्राप्त न कर सकता. अनन्त सुख की प्राप्ति की अभिलाषा होते हुए भी उसे प्राप्त नहीं कर सकता तथा अनन्तकाल तक नाना प्रकार के दुःखों का अनुभव करता रहता है। कहा भी है - "कर्म-निबद्धो जीव: परिशमन् यातनां भुक्ते।" -सुबोध पद्माकर - कर्म पाश में फंसा हुआ यह चोव जन्म मरण करता हुआ दुःखों को
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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