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________________ तिण्णाणं तारयाणं [३८] मुनि मारग निबाहिबो 'तिण्णाणं तारयाणं' बनना भी सरल नहीं है, अत्यन्त कठिन है। इसके लिए घोर संयम का पालन करना पड़ता है। संसार के समस्त सुखों का त्याग और समस्त आकर्षणों से मुँह मोड़ना होता है। ना विराम लिए साधना पथ पर जीवन पर्यन्त चलना पड़ता है। कुछ दिन कुछ महीनों या कुछ वर्षों में ही यह मार्ग तय नहीं हो जाता। इसीलिए अमीऋषि जी महाराज ने कहा है सहज नहीं है असिधारा पै गमन एनि त्यहि ना सहज पावक में तन दोहेबो । अंगुलि में मेरु धरी राखबो सहज नाहीं, भुजानी ते स्वयंभूरमण सिंधु थाहियो । देह सुकुमार अति संयम कठिन जावजीव विसराम पै न दो दिन को साहिबो । यातें अभीरिख सुविचार करी लीक व्रत, सहज नहीं है मुनि मारग निबाहिको । महाराज श्री संयम मार्ग अपनाने के इच्छुक प्राणियों को चेतावनी देते है जिस प्रकार तलवार की धार पर चतना, अग्नि में तन को जलाना, अंगुलि पर मेरु पर्वत का टिकाना और भुजाओं से स्वयंभूरमण सिंधु को तैरना कठिन है, उसी प्रकार सुकुमार देह को संयम के मार्ग पर चलाना कठिन है। साथ ही इस मार्ग पर निरन्तर चलते रहना है, दो दिन का भी विश्राम सम्भव नहीं है। अतः भव्यप्राणियों ! खूब सोच-विचार कर ही यह व्रत ग्रहण करना । मुनियों के इस मार्ग को, और मुनियों की इस कठिनचर्या को बाहना सरल नहीं है, अत्यन्त दुष्कर है। किन्तु निकट - भावी या मुक्ति के स्त्रो उपासक, इन बातों की कब परवाह करते हैं? वे अनन्त जन्मों के सहे हुए घर कष्टों के मुकाबले में इस एक जन्म अपने पथ पर बढ़ते के परीषहों और उपसर्गों को नगण्य मानते तथा दृढ़ता से अपना और अपने शरण में आए हुए चले जाते हैं। परिणाम यह होता है कि प्राणियों का उद्धार करने में समर्थ बनते हैं। मेह की उदारता सरदर तरुवर और संत जन के पश्चात् चौथा नम्बर परोपकारियों की श्रेणी में 'मेह' का आया। मेह बरसता है, पर उससे वह स्वयं कोई लाभ नहीं उठाता । लाभ उठाता है संसार | वक्त पर अगर वर्षा न हो तो दुनियाँ त्राहि-त्राहि कर उठती है। महाराष्ट्र प्रांत के भाई आए हैं। उनका कहना है कि, 'हमारे उधर पानी नहीं है, एक साल भी अमर पानी न बरसे तो प्राणी कितने दुखी और व्याकुल हो जाते हैं? जीवों की प्राण रक्षा होना भी कठिन हो जाता है। पानी न बरसने
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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