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________________ आनन्द प्रवचन : भाग १ आपा को विसार पर गुण में, मान होय, बाँधत करम नहीं करा विचार रे। 'अमीरिख' कहे छोड़ सकल चाल भव्य, पार गुरू सीख वेगा माग हो हुश्यार रे। संसार चक्र में फंसे हुए प्राणियों को विषय-विकारों से मुक्त करने तथा प्रमादरूपी निद्रा से जगाने की महान् पुरुष्टोंमें कितनी व्यग्रता होती है? और तो और केवल मानव के ही नहीं, पर पशु-पक्षियों के दु:खों को दूर करने के लिये भी वे प्राणपण से तैयार रहते हैं। गाय को बचाने के लिये प्राणों का बलिदान सन् उन्नीस सौ चौदह में खीचन गाँव में संत श्री विनोद मुनि ने, जिन्हें दीक्षा ग्रहण किये हुए कुल ढाई महीने ही व्यतीत हुए थे, एक गाय को बचाने के प्रयत्न में अपने प्राण होम दिये। आप काठियावाड़ के अति सम्पन्न श्रेष्ठि श्री दुर्लभ जी भाई विराणी के पुत्र थे। श्री दुर्लग जी भाई अभी हाल ही में सपत्नीक यहाँ दर्शनार्थ आए थे। देखकर मन को लाम - धन्य हैं यह दंपति, जिसने ऐसे पुत्र-रत्न को प्राप्त किया। अन्यथा रेल की फारी पर से गाय को हटाने की कोशिश करते हुए क्या कोई साधारण प्राणी अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकता था? गाय बच गई, किन्तु गाय को बचाने वाली महान् आत्मा इस लोक से प्रयाण कर गई। ऐसे होते हैं महापुरुष! युवावस्था में कदम रखते ही परोपकार के लिये जीवन त्याग देने वाले ऐसे पुरुष-पुंगव विरले ही होते हैं। लगता है कि इस प्रकार के प्राणी मानो परोपकार के लिये ही देह धारण करते हैं। एक पद्य में कहा गया सरवर, तरुवर, संतजन, चौथा कसै मेह। परोपकार के कारणे, चारों धारी देह ।। प्रतिपल परोपकार के लिये उद्यत रस्ते वाले जिन चार का उल्लेख इस दोहे में किया गया है, उनमें से प्रथम है 'सरोवर'। जीवन का अमृत जल वैसे संसार के समस्त प्राणियों को फीवन-दान देने वाले जल का प्रदाता पद्य में सरोवर कहा गया है, किन्तु हमें इसका शब्दार्थ नहीं, भावार्थ लेना है। और भावार्थ में जल-दान करने वाले सरोवर, कुएँ, नदी, नहरें और चश्मे आदि सभी आ जाते है। जहाँ-जहाँ से भी जल प्राप्त होता है। तो सरोवर या तालाब जिसमें पानी रता है, क्या वह उसके काम आता है? नहीं, उसके जल से पशु, पक्षी, मनुष्य जो भी अपनी तृष्णा शांत करना चाहें, कर सकते हैं। वह सभी को समान भाव से और समान-गुण-युक्त जल प्रदान
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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