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________________ • तिन्नाणं तारियाणं [३२] करता है। जिसके विषय में कहा गया है : अजीणे भेषजं वारि, जीणे वारि बलप्रदम्। भोजने चामृतं वारि......................। - अजीर्ण होने पर जल औषधि है, पच जाने पर बलवर्धक एवं भोजन के समय अमृत के समान है। ऐसे अमृत-मय जल को सरोवर तवल औरों के लिए ही रखता है। अपने लिये उसका कोई उपयोग नहीं करता। साथ ही अपने उदर में सुरक्षित रखे हुए उस जल से केवल प्राणियों की तृष्णा ही शान्त नहीं करता, प्राणियों की उदर-पूर्ति के लिये अन्न उपजाने में भी सहायक बनता है। हम पंजाब में घूमकर आए हैं। यहाँ भाखड़ा-नहर है। बड़ी विशाल नहर निकाली गई है। करोड़ों रुपया उसे बनाने में लगा किन्तु अब उसी का जल करोडो रुपयों की पैदाइश कर रहा है। लाखों व्यक्ति उसके जल से पैदा हुए अन्न से जीवन प्राप्त करते हैं। मानव को सरोवर के उदाहरण से शिक्षा लेनी है। उसकी बनावट के समान ही अपनी आत्मा को बनाना है। आत्मारूपी तालाब में शुभ-कर्मरूपी जल इकट्टा करना चाहिए और तालाब के बाँध के समान आत्मारूपी तालाब में बाँध बाँधना चाहिए। कैसे बंधेगा वह बाँध? व्रत, नियम तथा तपादि के द्वारा। ये सब एक प्रकार के बाँध हैं, जो आश्रवकर्मों को रोकेंगे। तथा संवर करनी को आगे बढ़ाएंगे। और उसके पश्चात् निर्जरा करेंगे। जब तक व्रत, प्रत्याख्यान तथा तप रूपी बाँध इस आत्मा-रूपी तालाब में नहीं बाँध चाएगा तब तक अशुभ-कर्म-रूप गन्दा व दुर्गन्ध युक्त जल अन्दर आने से नहीं रुकेगा। पर-उपकारी तरु तरु यानी वृक्ष। वृक्ष का जन्म किसके लिये है? क्या वह अपने फलों को स्वयं खाता है? अपने फूल की सुमन्ध स्वयं लेता है? या अपनी छाया में स्वयं बैठता है? नहीं, वह ये सभी कुछ औरों के लिये रखता है। कहा भी है पत्रपुष्पफलच्छाया, मूलं ककलदारुभिः। गन्धनिर्यासभस्मास्थितोक्यैः कामान वितन्वते॥ - वृक्ष अपने पत्ते, फल, फूल, छाया, मूल वल्कल, काष्ठ, गन्ध, दूध, भस्म, गुठली और कोमल अंकुर से सभी प्राणियों को सुख पहुंचाते हैं। परोपकारी वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाता दुनिया को खिलाता है, फूलों की सुगन्ध खुद नहीं लेता दूसरों को तांताजा करता है। वह जब तक खड़ा रहता
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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