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तिन्नाणं तारियाणं को बोध दे सके, जितने भी प्राणियों को मुक्ति का मार्ग बता सके, बताना प्रत्येक साधु का फर्ज है।" दूसरे:
बहता पानी निर्मला, पड़ा मे गंदा होय।
साधु तो रमता भला, दागमा लागे कोय॥ कहा गया है कि सदा बहने वाना जल निर्मल रहता है और एक स्थान पर भरा रहने वाला गंदा हो जाता है। अप लोग सभी जानते हैं कि धार खण्डित हो जाने पर पानी किसी गड्ढे में रूक जाता है, वहाँ सेवाल बन जाती है, फूलन आ जाती है और पानी से दुर्गन्ध आग लगती है, किन्तु वही पानी अगर पुनः बहने लगे तो शुद्ध और निर्मल हो जाता है।
इसी प्रकार साधु विचरण करते रहते हैं, उनका मानस शुद्ध रहता है। राग-द्वेष उनके हृदय में घर नहीं कर पाते। तथा इन दोषों के कारण कोई दाग, कोई कलंक उन्हें नहीं लग पाता। उनले चित्त में सदा सम-भाव बना रहता है। वे आज यहाँ, कल कहाँ, और इस का अमुक नगर में तथा अगले वर्ष अमुक नगर में पहुंचते हैं। परिणाम यह होता है कि न उनका किसी पर मोह बढ़ता है और न ही किसी से वैर-भाव।
पर मेरी, इस बात का आप यह अर्थ न लें कि एक स्थान पर रहने दाले साधु-साध्वी राग-द्वेष से भर ही जाते हैं अथवा किसी प्रकार की मोह-माया में फंसे बिना नहीं रहते। महान् आत्मा, एक स्थान पर रहकर भी इन सब दोषों से अलिप्त रहती हैं।
प्रतापगढ़ में हमीराजी महासती जी थीं। वे अट्ठारह वर्ष तक वहाँ रहीं। मेरा भी चातुर्मास उनकी उपस्थिति में म्हाँ हुआ था। किन्तु मैंने किसी भी व्यक्ति की जबान से कभी यहा नहीं सुना कि- उनके आहार- पानी में दोष था, या वस्त्रादि किसी भी प्रकार की अन्य वस्तु को लेने में कोई दोष था। 'सभी के साथ उनका समभाव हैं। यही सब लोग कहते थे। आपके यहाँ भी पाँच वर्ष से सती जी विराज रही हैं, आप स्वयं ही उनदे विषय में जानते हैं।
ऐसी आत्माएँ क्वचित् ही दिसाई देती हैं। नहीं हैं. यह मैं नहीं कहता। कम होती हैं, यह कहता हूँ। ऐसी आत्माएँ एक स्थान पर अठारह, बीस, पच्चीस या पचास वर्ष रहकर भी मोह-ममता में फँसने का नाम नहीं लेतीं। मठ वगैरह जहाँ होते हैं, वहाँ 'यह हमारा है' सी भावना रहती है। किन्तु हम वर्षों एक मकान में रहकर भी उसे हमारा मकान है ऐसा नही कहते, यही कहते हैं कि श्रावकों का मकान है। इस प्रकार, जहाँ हमारेपन की भावना ही नहीं आती वहां मोह के आने की संभावना कैसे हो सकती है? साधुओं के लिये चाहे कुटिया हो, या आलीशान महल एक धर्मशाला के समान होता है । जिसमें ठहरनेवालों के लिये उससे रंचमात्र भी मोह नहीं होता।