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________________ • धर्म का रहस्य हैं, खूब प्रसन्न हुए तथा मारे खुशी के असावधान हो गये। मौका पाकर स्त्री वेश धारी अभ्प्राकुमार बाहर जाने को हुए कि बाहर घेरा डाले हुए सिपाहियों से चोरों को पकड़ा लूँ। इसी बीच रोहिणेय की दृष्टि देवी पर पड़ी और उसे भगवान के बताए नए देवताओं के तीनों लक्षण याद आ गए। उसने ध्यान से देखा तो मालूम हुआ कि देवी जमीन पर चल रही हैं तथा उसकी छाया भी पड़ रही है। [३१०] यह देखते ही उसे सन्देह हो गया की देवी सच्ची नहीं है और चोरों को पकड़ने के लिए जाल बिछाया गया है। यह फौरन अपने स्थान से उठा और किसी तरह से बाहर निकल कर भाग गया। इधर बाकी के सारे चोर जो कि देवी के साक्षात् दर्शन से और भी बेफिक्र हो गए थे, एकड़ लिए गए। इस घटना का रोहिणेय पर बड़ा भारी प्रभाव पड़ा। उसने सोचा- "मजबूरी से सुने गए भगवान के तीन वाक्यों आज मुझे मृत्यु के मुँह से बचा लिया। तो अगर मैं स्वेच्छा और श्रद्धापूर्वक भगवान का उपदेश सुनूँ तो न जाने कितना लाभ होगा।" इस विधार ने उसके जीवन की दिशा ही बदल दी और भगवान की शरण लेकर उसने अपने मनुष्य जन्म को सार्थक क्रिया । यह उदाहरण हमें बताता है कि बिना श्रद्धा से सुने हुए सद्गुरु के चन्द वचनों से भी जब मनुष्य महा संकट से बच सकता है तो फिर श्रद्धापूर्वक सुने गए धर्मोपदेश से अनन्त जन्म मरण से क्यों नही बचेगा ? शेखसादी ने भी कहा है : मर्द बामद कि गोरद अन्दर गोगा, पर नाविश्वात पन्द वर दीवार । मनुष्य को चाहिए कि हार्मोपदेश अगर दीवार पर लिखा हुआ मिल जाय, तो भी उसे ग्रहण करे। - तो बन्धुओ, मैं आपको यह बता रहा था कि एक धर्म कथा समस्त विकथाओं को जीत लेती है। अर्थात् मनुष्य कितने भी विकथाएँ करे, बे-सीर पैर की हाँके, उससे उसे कोई भी लाभ नहीं होता किन्तु धर्म कथा, शास्त्र श्रवण और धर्मसम्बन्धी चर्चा अगर अत्यन्त थोड़ी मात्रा में भी करे तो उसका जीवन उन्नत हो सकता है। इसलिये हमें सदा इनमें रुचि मखनी चाहिए । यही भव्य जीवोंका प्रथम लक्षण होता है। अन्यथा तो कहा जाता है : नहिं जानत जेह निजतम रूप रता पर द्रव्य चले विरुधा । घट जोर मिथ्या ज्वर को तिह से सब दूर भई निज धर्म छुधा ।।
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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