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________________ धर्म का रहस्य [ ३०८] सकता है? अभी मैंने बताया ही है कि संसार के विभिन्न विषयों पर व्यर्थ वादविवाद करने से मनुष्य को कोई लाभ नहीं होगा। न ही कोई लाभ उपन्यास, कथाकहानी, नाटक या आजकल का घटिया जासूसी साहित्य पढ़ने से होता है। उलटे लोगों का समय बरबाद होता है तथा उनके हृदयों में विकृत भावनाएँ जन्म लेती हैं। • इसकी अपेक्षा अगर महापुरुषों के जीवन चरित्र पढ़े जायें, महान् संत मुनिवर और तीर्थकरों के गुणों का स्मरण किस जाय, तथा सद्गुरु के उपदेशों को कम मात्रा में भी श्रवण किया जाय तो आत्मा को अधिक लाभ होता है। सद्गुरु प्रदत्त धर्मोपदेश की महत्ता के विषय मे क्या कहूँ? एक दिन मैंने बताया भी था - एक वचन जो सद्गुरू केरो, जो राखे दिल मांय रे प्राणी। नीच गति में ते नहीं जावे, इस भाखे जिनराय रे प्राणी। अर्थात् सदगुरु के कहे हुए वचनों में से एक भी वचन हृदय में धारण कर लिया जाय तो आत्मा उसके सहारे से इतनी शुद्ध और निर्मल बन सकती है कि उसको नीच गति में कभी नहीं जाना पड़ता । केवल तीन वाक्यों से मुक्ति शास्त्रों में रोहिणेय चोर का वर्णन आता है कि उसने भगवान के केवल तीन वाक्य सुने और उनके परिणामस्वरूप उसकी जीवन-दशा बदल गई। जहाँ उसका जीवन अनन्त जन्मों की वृद्धि की ओर जा रहा था, वहाँ वह अनन्त जन्मों के नाश की घोर घूम गया। रोहिणेय का चौर्य-व्यवसाय कुल परम्परागत था। अतः स्पष्ट है कि उसका पिता भी चोर था जब वह मरने लगा तो उसने रोहिणेय को अपने पास बुलाकर दिया। उसकी पहली बात थी, चोरी धन्धे संतों के पास नहीं जाना और न ही दो बातें सदा स्मरण रखने का आदेश को कभी मत छोड़ना और दूसरी थी कभी उनका उपदेश सुनना । - नसीहतें दोनों ही उलटी थीं, पर पुत्र ने उन्हें गाँठ बाँध लिया कि मेरे पिता की दी हुई हैं अतः इनका पूर्ण रूप से पालन करूँगा। अनेक पुत्र ऐसे ही होते हैं। वे कहते हैं : " तातस्य कूपोऽयमिति ब्रुवाणा: क्षारं जलं कापुरूषाः पिबन्ति । " अर्थात् - मेरे पिता ने कुआँ खुदवाया है अतः इसीका पानी पीऊँगा। लोग समझाते हैं "अरे भाई! तेरे पिता के इसे खुदवाया है तो क्या हुआ ? पानी तो इसका खारा है। अतः अपनी जिद छोड़कर दूसरे कूएँ का मीठा जल क्यों नहीं पीता ? पर पुत्र है कि यही उत्तर देता है "पानी तो मैं इसी कूएँ का पीऊँगा !"
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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