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________________ • [२९९] आनन्द प्रवचन : भाग १ गाँव का ही पता चला और न ही अपनी योंपड़ी मिली। बेचारे सारे गाँव में ढूँढ़ते फिरे और तब परेशान होकर नगर के व्यक्तियों से गेले - देवनगर के यच्छपुर, हों भट को कित आय? नाम कहा यहि नगर को सो न कहो समुझाय। सो न कहाँ समुघाय नगर वासी लप कैसे? पथिक जहाँ संभ्रमहि, तहाँ के लगा अनैसे। सुदामा नगर निवासियों से पूछते हैं - 'अरे मुझे कोई बताओ तो सही कि मैं देव-नगर या राक्षस पुरी में कहाँ भटक गया हूँ। इस नगर का नाम क्या है? तुम कैसे नगरवासी हो जो भूले हुए पथिक के भ्रम का निवारण भी नहीं करते।' आखिर जब लोगों ने उन्हें अपने महल के द्वार पर पहुँचाया और उनके आने का समाचार पाते ही राजरानियों के समान सुशोभित ब्राह्मणी अपने पति को प्रिय सम्बोधन सहित अन्दर लिवा जाने को उद्यत हुई तो फिर सुदामा आग-बबूला होकर बोल पड़े : हमैं कंत तुम जानि कही, बोलो बचन सँभारि। इन्हें कुटी मेरी हती, झोन बापुरी नार॥ सदाचारी ब्राह्मण रानी बनी हुई पत्नी को पहचान नहीं सके और उसे फटकारते हुए बोले -"ऐ! तुम मुझे अपना कंत मत कहो, जबान सम्भालकर बात करो। यहाँ पर मेरी कुटिया थी और बिचारी दीन-हीन मेरी पत्नी! वह कहाँ है? प्रसंग अत्यन्त मनोरंजक है और मारोरंजन के उद्देश्य से ही कृष्ण ने सुदामा को कानों कान खबर दिये बिना यह सब किया था। बाल्यावस्था में रही उनकी परिहास-वृत्ति द्वारिकानाथ बन जाने पर भी गई नहीं थी। शांतिदूत श्रीकृष्ण कृष्ण की प्रतिभा बहुमुखी थी! कभी अगर वे सुदामा जैसे अपने मित्र के साथ परिहास पर उतर आते थे, तो कभी शांति के दूत भी बनते थे। महाभारत के युद्ध से पहले भयानटन संग्राम न छिड़ जाय और घोर नर-संहार न हो, इसलिये वे पांडवों की ओर से कौरवों को, अर्थात् दुर्योधन को समझाने के लिये गए थे। द्वारिका के राजा होने गर भी वे एक दूत का कार्य करने के लिये तैयार हो गये। यह उनकी शान्ति-प्रियता न कितना उत्तम उदाहरण है। दुर्योधन के पास जाकर उन्होंने शांति पूर्ण और मर्यादित शब्दों में केवल यही कहा - "दुर्योधन! भले ही तुम साचा राज्य अपने पास रखो किन्तु पाण्डवों को पाँच गाँव मात्र दे दो। वे लोग उसी ही अपना निर्वाह कर लेंगे। आखिर
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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