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________________ • [२८९] आनन्द प्रवचन : भाग १ अपने हृदय पर विजय प्राप्त करना हजार हज़ों से भी बेहतर है। महर्षि वेदव्यास जी का भी यह कथन है : "तीर्थानां हृदयं तीर्थ शुचीनां हृदयं शुचिः।" तीर्थों में श्रेष्ठ तीर्थ हृदय है, पवित्र वस्तुओं से अति पवित्र भी विशुध्द हृदय ही है। कहने का सार यही है कि हृदय की शुद्धता ही समस्त धर्म-क्रियाओं तथा तीर्थयात्राओं से श्रेष्ठ है। अगर मनुष्य का हृदय सरलता, पवित्रता तथा पर-दुखकातरता से परिपूर्ण है तो उसे अन्यत्र कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं है। पर अगर ऐसा नहीं है, अर्थात् उसके अन्त:करण में स्वच्छता नहीं है तो लाख-धर्म-क्रियाएँ करने पर भी उसकी आत्मा का कल्याण होना सम्भव नहीं है। एक कवि के उद्गार मुझे याद आ रहे हैं : कैसे हो कल्याण करणी काली है। नहीं होगा भुगतान हुण्डी जाली है। मनुष्य की इस आत्मा का उद्धार होना कैसे शक्य है, जबकि उसकी करनी कषायादि की कालिमा से काली हो चुकी है। कवि ने बड़ा मनोरंजक दृष्टांत दिया है - जैसे किसी व्यक्ति ने एक जाली हुण्डी दूसरे को भेज दी। वह व्यक्ति अगर स्स हुण्डी का भुगतान करने के लिए जाए तो क्या कोई व्यापारी उसे लेने को तैराबर होगा? नहीं, पक्का व्यापारी उसमें भेजने वाले के हस्ताक्षरों की जाँच करेगा, तारुख देखेगा तथा उसमें जो कुछ लिखा हआ है वह ठीक है या नहीं, इस बात पर भी गौर करेगा तथा सन्तोष न होने पर कोरी ही लौटा देगा। कपट-जाल में होशियार व्यापारी नहीं फंसेगा। इसी प्रकार मनुष्य की धर्म-क्रियाएँ अगर बनावटी हैं तथा केवल दिखावे के लिये ही की गई हैं तो उनका फल जाली हण्डी के समान शून्य ही होगा। आगे कहा गया है : तू तन का काला धब्बा, धोता ले मौरन पानी। तेरे मन पर कितने काले, थब्बों की पड़ी निशानी, स्यों न निहारी हैं, नहीं होगा भुगतान हुण्डी जाली हैं। __ "तेरे शरीर के किसी हिस्से पर तो थोड़ा-सा भी धब्बा, दाग का कीचड़ लग जाता है तो तू फौरन उसे साबुन से माल-मलकर धोने लगता है। पर कभी यह भी देखता है कि काम, क्रोध, मद, मत्सर मोह तथा दंभ आदि के कितने धब्बे तेरे मन पर लगे हुए हैं? उन्हें कभी क्यों नहीं रखता?'
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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