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________________ ● सर्वस्य लोचनं शास्त्रं... तेरा बिगड़ा पड़ा है इंजिन, गड़ी किस तरह चलेगी ? दीपक में तेल ख़तम है, बाती किस तरह जलेगी, बुझने वाली है, नहीं होगा भुगतान.......... इस पद्य में भी कवि ने दो छान्त देकर मानव को समझाया है इंजिन, बिगड़ जाने पर जिस प्रकार गाड़ी नहीं चलती और तेल समाप्त होने पर बत्ती नहीं जल सकती इसी प्रकार अगर तेरा निकृत हृदय शुद्ध नहीं होता तो इस मुक्ति पथ पर तू आगे नहीं बढ़ सकता। यह भलो भाँति समझले कि तेरी यह यात्रा अब रुकने ही वाली है।' तेरे अन्दर ज्ञान नहीं हैं, कैसे फिर देह चलेगी ? तेरी नैया फूट रही है, कैसे फिर पार लगेगी, डूबने वाली है, नहीं होगा भुगतान........ [२९०] 'अरे अज्ञानी जीव! तेरे अन्दर ज्ञान नहीं है। उसके अभाव में तेरी इन्द्रियाँ और शरीर किस प्रकार शुध्द क्रियाएँ करेंगे ?' 'इस कर्म रूपी सागर को एकमात्र धर्म की नौका से ही पार किया जा सकता है पर तेरी इस नाव में तो र्गुणों के अनेक छिद्र हो रहे हैं। फिर तू ही बता यह भव-सागर को कैसे पार कर सकेगी ? देख ! यह डूबने की तैयारी में ही है, अब भी तू चेत जा !' नकली हुण्डी को जला दे, स मन को शुद्ध बनाले। पी 'धन' ज्ञानामृत प्याले, क्यों मरता प्यास बुझाले, सुगुरू गुण-शाली है, नहीं हांगा भुगतान........। अन्त में कवि यही सीख देते हैं 'हे जीव! अपनी इस नकली हुण्डी को जलाकर भस्म कर दे। अर्थात् तेरे ज्म, तप तथा धर्म ध्यान आदि में जो भी दिखावा और बनावटीपन है उसे नष्ट कर दे तथा मन को क्रोध, मान, माया तथा लोभादि कषायों से रहित करके शुद्ध अवस्था में ले आ।' 'तेरा तो बड़ा सौभाग्य है कि तुझे अत्यन्त गुणवान गुरु का संयोग मिला है। अतः इस अवसर का लाभ उठा और जिनवचन रूपी ज्ञानामृत का पान कर! व्यर्थ ही अपनी आत्मा को ज्ञान पिपाना से व्याकुल क्यों किये हुए है? इसकी अनन्त काल से चली आ रही प्यास को मिटा तथा सदा-सदा के लिए तृप्त कर । मत मूल कि यह मानव- पर्याय बार-बार नहीं मिलती और न ही ऐसे शुभ संयोग पुन: पुन: मिलते हैं। बन्धुओ, आपको ध्यान होगा के हम एक संस्कृत के श्लोक का विवेचन कर रहे हैं। श्लोक में अभी हृदय की स्वच्छता पर बताया जा रहा था और अब उसमें भुजाओं के पौरुष का महत्त्व बताया गया है। कहा है कि भुजाओं की सुन्दरता
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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