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________________ • सर्वस्य लोचनं शास्त्र... (२८२] [२४] RAMRIDEO HOROINORMA (सर्वस्य लोचनं शास्त्रं...)) - धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो! मनुष्य जन्मरूपी वृक्ष के छ: पल आचार्य श्री सोमप्रभसूरी ने अपने एक श्लोक में बताये हैं। उनमें से पाँच फों का वर्णन आपके सामने हो चुका है। आज छठे 'शास्त्र-श्रवण' पर आपके सामने कुछ कहना है। शास्त्र-श्रवण मानव जीवन को उन्नत बनाने का सर्वोत्तम साधन है। जब तक मनुष्य शास्त्र-श्रवण नहीं करता तब तक उसे यह मालूम नहीं पड़ता कि उसके लिए हेय क्या है और उपोदय क्या है? अर्थात् उसके लिए छोड़ने योग्य क्या है, और ग्रहण करने योग्य क्या है? शास्त्र का महत्त्व बताते हुए कहा भी है___सर्वस्य लोचनं शास्त्रं, यस्य नास्त्यंध एव सः। अर्थात् शास्त्र सबके लिए नेत्र के समान है जिसे शास्त्र का ज्ञान नहीं, वह अन्धा है। मनुष्य अपने चर्म-चक्षुओं से जगत के समस्त दृश्यमान पदार्थों को देखता है। किन्तु शास्त्र-श्रवण से जो उसके खान-नेत्र खुलते हैं, उनके द्वारा वह अपनी आत्मा को देखता है तथा आत्मिक गुणी की पहचान करता है। इसलिए अवश्यक ही नहीं अनिर्वाय है कि व्यक्ति जहाँ तक भी इन सके, शास्त्र-श्रवण करे। शास्त्र-श्रवण किसलिये? अगर व्यक्ति धर्मशास्त्र सुनता है तो उसका चित्त एक अनिर्वचनीय संतुष्टि और प्रसन्नता से भर जाता है। हृदय में रहे हुए पापपूर्ण एवं कलुषित विचार नष्ट होते जाते हैं तथा उनके स्थान पर पवित्र एवं शांतिदायक विचार जन्म ले लेते शास्त्र-श्रवण का मन पर बड़ा गहरा असर पड़ता है। भले ही कभी-कभी उनकी भाषा समझ में न आये किन्तु एक अवर्णनीय सन्तुष्टि मन पर इस प्रकार छा जाती है कि मानस शुद्ध और पवित्र बनने लगता है। जिस प्रकार एक मंत्रवादी सर्प के विष को उतारने का मंत्र पढ़ता है तो
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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