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________________ • [२८१] आनन्द प्रवचन : भाग १ करना चाहिए। और यह तभी हो सकेगा जबकि हम गुणानुरानी बनेंगे। अगर हममें, प्रत्येक अन्य प्राणी के होटे से छोटे गुण को भी ग्रहण कर लेने की लालसा बनी रहेगी तो एक दिन ऐसा अवश्य आएगा कि संसार के समस्त सद्गुण हमारे हृदय में निवास करने को आतुर नेंगे। दूसरे शब्दों में मनुष्य-जन्म-रूपी वृक्ष का पाँचवाँ फल गुणानुराग एक दिन हमें मह क्षमता प्रदान कर देगा कि उसके बल पर हम मोक्ष-पथ की समस्त कठिनाइयों को पात्र कर सकेंगे। समय हो चुका है तथा आप भी मनुष्य-जन्म-रूपी वृक्ष के पाँचवे फल 'गुणानुराग' पर काफी सुन चुके हैं। अब इसके छठे फल 'शास्त्र श्रवण' पर कल विचार किया जायेगा।
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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