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________________ • गुणानुराग ही मुक्ति-मार्ग है [२८०] जो व्यक्ति ऐसा करते हैं, समझना चाहिए के वे स्वयं अपने पैरों में कुल्हाडी मारते रावण, कौरव और कंस क्या सस्था गुण-हीन थे? नहीं, वे अनेक गुणों के धारक तथा धनुर्विद्या-धारी शक्ति-सम्पन्न योद्धा थे। किन्तु फिर भी उनका पतन और कुल-नाश हो गया। यह क्यों? केवल इसलिये कि उन्हें अपने गुणों का गर्व था। यह अवगुण ही उनके समूल-नाश का कारण बना तथा सदा के लिये कलंकित भी बना गया। एक अंग्रेजी की कहावत है - "Pride goes before, and sirame follows after." - पहले गर्व चलता है और उसके बाद कलंक आता है। इसीलिये कबीर ने कहा है : कबिरा गर्व न कीजिये, कबहुँ न हँसिये कोय। अबहुँ नाव समुद्र में, को जाने का होय॥ कितनी सची शिक्षा है कि - कैसी अन्य के अदगुणों को देखकर कभी उसका उपहास मत करो तथा अपने गुणों का गर्व मत करो! अभी तो स्वयं तुम्हारी जीवन नौका भी संसार-सागर के मध्य में ही है। कौन जानता है कि पार उतरोगे या नहीं।" वस्तुत: सच्चा गुणवान वही है जो अप आप में सदा कमियाँ देखता है। गुरु लाना कहा जाता है कि यूनान का राका सिकंदर जब भारत-विजय की आकांक्षा से खाना हुआ तो उसने अपने गुरु आस्तु से पूछा - "आपके लिये भारत से क्या लाऊँ?" अरस्तु बोले - "मेरे लिये वन से ऐसा गुरु लाना जो मुझे ब्रह्मज्ञान दे सके।" यह अरस्तु का उत्तर था जो कि स्वयं महाज्ञानी और गुरु-पद पर प्रतिष्ठित थे। फिर भी उन्होंने अपने आप में कमी1 महसूस की तथा अपने शिष्य सिकन्दर से गुरु लाने की ख्वाहिश प्रकट की। प्रणवानों का सचा लक्षण यही है कि वे अपने आप में उचता नहीं, वरन् लघुता महसूस करते हैं। और उनकी लघुता की भावना ही उनकी महत्ता का प्रतीक होती है। जो भव्य प्राणी इस प्रकार अपनी 1 अहंकार-रूप दुर्बलता का त्याग कर देते हैं, वे ही इस लोक में प्रशंसा और परलोक में कल्याण के भाजन बनते हैं। इसलिये बन्धुओ, हमें अपनी बुद्धि और विवेक को जागृत करते हुए अनन्त पुण्यों के उदय से प्राप्त होने वाले इस मनुष्य जन्म को सार्थक करने का प्रयत्न
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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