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________________ गुणानुराग ही मुक्ति-मार्ग है [२७०] इस प्रकार सृष्टि के समस्त प्राणी और पदार्थ जहाँ कुछ गुण रखते हैं, वहाँ अवगुणों को भी छिपाये रहते हैं। किन्तु इस साधारण नियम के अपवाद स्वरूप एक स्थान ऐसा भी है जहाँ समस्त गुण ही गुण हैं, अवगुण एक भी नहीं। आपके हृदय में जानने की उत्सुकता होगी कि कौन सा है वह स्थान जहाँ केवल गुण ही गुण हैं, अवगुणों का नाम भी नहीं है। सर्वगुण सम्पन्न कौन? सर्वगुण सम्पन्न केवल तीर्थंकर के होते हैं, जिनमें एक भी अवगुण नहीं होता. भक्तामर स्तोत्र में श्री मानतुंगाचार्य भगवान आदिनाथ की स्तुति करते हुए एक श्लोक में कहते हैं को विस्मयोऽत्र यदि नाम गुणस्लोष - स्त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश! दोषैरुपात - विविधाश्रयजात गर्वे: स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचेदपीक्षितोऽसि । - हे भगवन्! आप अनन्त गुणों के धारक हैं। संसार में जितने भी गुण हैं, वे सम्पूर्ण गुण आप में आश्रित हैं। पर समस्त गुण आपके आश्रय में हैं इसमें भी आश्चर्य की कोई बात नहीं है। क्योंकि उन गुणों को एक साथ रहने के लिये अन्यत्र कोई स्थान ही नहीं है। देखिये, कवि के कहने का ढंग मो कितना सुन्दर है कि - समस्त गुण आपके आश्रय में हैं। अर्थात् और कोई भी व्यक्ति ऐसे महान गुणों को अपने पास रखने की क्षमता नहीं रखता। जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति अपने घर में हाथी नहीं बाँध सकता, उसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य समस्त गुणों के समूह को अपने आश्रय में नहीं रख सकता। यानी सर्वगुण सम्पन्न नहीं बन सकता। समस्त गुणधारी महान् और अवतारी पुरुष तो विरले ही हो सकते हैं जैसे तीर्थंकर प्रभु। उनके अलावा और कौन व्यक्ति अहिंसा, क्षमा, दया, अनुकम्पा सरलता, तप, त्याग तथा संयमादि अगणित गुणों का अपने में समावेश कर सकता ॐ? श्लोक में आगे कहा गया है --- दोषैरुपात्त-विविधाश्रयनात गर्दै :, स्वप्पान्तरेपिन कदाचिदपीक्षितोऽसि। हे भगवन् ! संसार के समस्त गुणों ने तो एक साथ रहने का स्थान अन्यत्र ने पाकर तुम्हारे अन्दर ही प्रवेश किया। किन्तु अवगुणों ने सहज ही विविध जनों का आश्रय पाकर वहीं अपना अड्डा जगा लिया। तथा अपने उन क्षुद्र स्थानों को पाकर ही घमण्ड में ऐसे चूर हुए लि स्वप्न में भी तुम्हारे पास आने की कोशिश नहीं की।
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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