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________________ • [२६७] आनन्द प्रवचन : भाग १ "यह अन्न गरीबों का है " बारी-बारी से सभी कोठार खुलवाए गये और सभी में ऐसे ही ताम्रपत्र निकले। यह देखकर जगशाह की उदारता और दानवीरता के समक्ष महाराज का मस्तक झुक गया। वे कह उठे – “सेठी, इस देश के वास्तविक राजा आप हैं, मैं नहीं।" "यह आप क्या कहते हैं महाराज! सची बात तो यह है कि हम सभी एक दूसरे के हैं। हमारे पास जो कुछ भी , उस सब पर देश के प्रत्येक प्राणी का अधिकार है।" कितने सुन्दर विचार थे जगडूशाह के? वास्तव में ही जब प्रत्येक देने वाले की भावना ऐसी हो, तभी उसका दिया हुआ दान सार्थक होता है तथा यश और कीर्ति उसे बिना चाहे प्राप्त होती है। यश और कीर्ति के लिए दिया हुआ दान ये चीजें भले ही दिला दें उस पुण्य-एल को नष्ट कर देता है जो निस्वार्थ भाव से दान दिये जाने पर प्राप्त होता है। भजन में आगे कहा गया है - फकत अकेला जाना तुम को। लौट नहीं आता है तुम को, लाभ कमाना हो तो प्यारे दानी हो। बार-बार नहिं नरतन पावे, गया समय वापिस नहिं आई। भाग्य जगाना हो तो प्यारे दानी नमो। इस संसार से तुम्हें अकेला ही जाना है। जिस पत्नी, पुत्र, पिता आदि सगे-सम्बन्धियों के लिए तुम रात-दिन परिश्रम करते हो तथा जिनके मोहवशात् अनेक-अनेक काँका बन्धन करते चले जाते हो वह सब कुछ हुम्हारी आँखें मुंदते ही छूट जाएगा। क्योंकि मृत्यु के पश्चात् तो अगर पुनः मनुष्य भी बन गये तो पराया मानकर तुम्हें कौन अपनाएगा या पशु-योनि प्राप्त करली तो घर में भी कैसे घुसने दिया जायेगा? ___वास्तव में तो यह नर-देह पुन: ना सम्भव ही नहीं है। इसलिये इसी जीवन के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करना बुद्धिमानी है। बीता हुआ समय पुन: लौटकर नहीं आता। अतः इस अल्प-काल में ही आत्म-कल्याण का प्रयत्न कर लेना चाहिए और उसका सबसे सीधा माग है नि:स्वार्थ भाव से दान देना। जो व्यक्ति इस प्रकार का दान देगा, उसका भाग्य निश्चय ही जाग जाएगा। दान की महिमा अपरम्पार है। जो व्यक्ति इस बात की सत्यता को सही
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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