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आनन्द प्रवचन : भाग १
एक भजन में भी दान का बड़ा महत्त्व बताते हुए लोगों को दानी बनने की प्रेरणा दी है। कहा है :
पुण्य कमाना हो तो प्यारे दानी बी! नाम कमाना हो तो प्यारे दानी बी! धन दौलत यहां पर रह जासी, दिया लिया ही संग में जासी, यश कमाना हो तो प्यारे दानी बी! अनाथ रक्षा विद्यालय में, गऊ रक्षा और कन्यालय में,
धर्म कमाना हो तो प्यारे दानी बी!
कवि कहता है - प्रिय बंधुओ, धगर तुम्हें पुण्य कमाना है और अपना नाम अमर करना है तो तुम दान करना सीखो।
हमने पंजाब में देखा। एक ही भारे एक कोलेज चला रहे थे तथा सैकड़ों विद्यार्थी उस कॉलेज से ज्ञान-लाभ ले रहे थे। छोटी सादड़ी मेवाड़ में भी गोदावत छगनलाल जी सेठ ने सवा लाख रूपया एक मुस्त गुरुकुल में लगाया तो आज भी चल रहा है तथा उसके द्वारा अनेक बालक अपने जीवन-निर्माण का प्रयत्न कर रहे हैं। बीकानेर में भी देखते हैं कि अगरचन्दजी भैरोंदान जी सेठिया ने एक साथ तीन लाख, सत्तर हजार रूपया संवत् १९७७ में निकाला था एक बृहत् पुस्तकालय का निर्माण किया। उस पुस्तकालय में हजारों पुस्तकें हैं जो ज्ञान-पिपासु व्यक्तियों की तृषा शान्त करती हैं। हैदराबाद के श्रीमंत राजा बहादुर सुखदेवसहाय जी, ज्वालाप्रसाद जी ने भी लाखों रूपयों का दान देकर शास्त्रोद्धार का महान् कार्य करवाया है। करीब-करीब प्रत्येक स्थानक में उनके द्वारा पहुँचाए हुए अमूल्य शास्त्रीय ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं।
बंधुओ, ऐसा दान ही दान कहलाता है तथा पुण्य कर्मों के बन्धन का कारण बनता है। इसलिये अगर दान करा है तो बड़ी सावधानी से और शुभ-पात्र में ही करना चाहिये।
कवि ने आगे कहा है - यह धन-दौलत तो सब यहीं रह जाने वाली है। एक कौड़ी भी साथ नहीं जायेगी। साथ जाएगा केवल तुम्हारे हाथ से दिए हुए दान का फल। इसलिये अनाथ तथा असहाय प्राणियों की तथा गाय जैसे मूक पशुओं की रक्षा में अपना धन लगाओ। आज के बालक जो कि भविष्य में समाज के कर्णधार बनेंगे, उन बालक बालिकाओं की शिक्षा-दीक्षा में अपना पैसा खर्च करो तभी उससे सचा लाभ हासिल हो सकेगा। ताप तुम्हें सही अर्थों में धर्म-लाभ होगा।
किन्तु कवि के शब्दों में एक बात और भी छिपी हुई है। वह यह कि तुम सब कुछ करो पर उसे अपना काव्य समझ कर करो। यह मत समझो कि