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दुर्गति नाशक दान
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः ।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेत्त्रयं त्यजेत् ॥
नरक के तीन द्वार हैं, जो आत्मा का विनाश करने वाले हैं। वे हैं
काम, क्रोध और लोभ । अतएव इन तीनों का लग कर देना चाहिए।
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बंधुओ, मेरे कहने का आशय यही है कि मानव को लोभ और लालच का त्याग करके अपने धन को सुकार्यों में लगाना चाहिये तथा सुपात्र को दान
देना चाहिये। क्योंकि कुपात्र को दिया हुआ दान भी निरर्थक चला जाता है।
दान तो जल के समान है, जिसे जिहार बहाओ उधर बहने लगता है।
संत तुकाराम जी कहते हैं -
उदकानेले तिकड़े जावे, सहज केले तैसे व्हावे । मोहरी कांदा ऊस, एक वाफा भित्र रस ।
उदक पानी को कहते हैं। पानी को आप जिधर ले जाएँगे, उधर ही चला जाएगा। जिस वृक्ष की जड़ में डालेंगे, कैसा ही फल प्रदान करेगा। नींबू को पानी दिया जाय तो नींबू, अनार को पानी दिया जाय तो अनार और नीम को पानी दिया जाय तो निंबोली प्राप्त होगी।
एक किसान अपने खेत में एक ो क्यारी के अन्दर तीन प्रकार की चीजें बोता है। उनके लिये जमीन एक है, वहाँ का पानी एक है, सींचने वाला एक है, आकाश एक है, हवा एक है। अर्थात् सभी कुछ एकसा है किन्तु बीज अलग-अलग है तो फल भी अलग-अलग तरह के मिलेंगे।
तुकाराम जी ने यही कहा है
एक मोहरी यानी राई का बीज डाला, एक कॉंदे का और एक गन्ना बोया । इस प्रकार राई में तीखापन है, प्याज दुर्गंध वाला तथा गन्ना मिठास मय पानी एक की पिलाया। किन्तु मन्ना उत्तम, राई मध्यम और कांदा निकृष्ट निकला। अब चाहने गर भी तीनों को एक जैसा उत्तम नहीं बनाया जा सकता। क्योंकि जैसे बीज बो वैसा ही फल मिलेगा। दुर्गंध वाले कांदे को लाख प्रयत्न करने पर भी सुगंधमय नहीं बकाया जा सकेगा। कहा भी है :
बड़ा होय सो बड़ी विचारे, ओगी विचारे वांदो ।
केसर कस्तूरी में डाटो, पण बहत न छोड़े कांदो ॥
भले ही काँदे को गन्ने के साथ एक ही क्यारी में उगाया है, किन्तु गन्ने की मिठास वह प्राप्त नहीं कर सकता।
इन उदाहरणों के द्वारा कवि मनुष्य को यही शिक्षा देता है कि अपना पैसा सत्कार्य में लगाओ, सुपात्र को दान करो। अगर कुपात्र को वह दे दिया गया तो फिर लाख प्रयत्न करने पर भी शुभ परिणाम नहीं ला सकेगा।