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आनन्द प्रवचन भाग १
तथा हजारों में से एकाध सच्चा पंडित वक्ता तो दस हजार व्यक्तियों में से भी मुश्किल से एक निकल पाता है। और दाता का मिलना तो महा मुश्किल है। शायद लाखों या करोड़ों व्यक्तियों में ढूँढने जायें तो भी मिले या न मिले। कहा नहीं जा सकता ।
इसीलिये संसार के सभी धर्म पुकार - पुकार कर कहते हैं कि दान दो सचे दानी बनो!
शेखसादी अपनी पुस्तक करीमा में कहते है :
सखावत कुनद नेक बखात्र इखतियार, के मर्द अज सखावत बुद्द बखतियार ।
'ऐ
फारसी भाषा में सखावत दान को कहते हैं। शेखसादी ने कहा है - नेक बख्त! अच्छे नसीब वाले इन्सान ! अख्तियार कर अर्थात् दान देना सीख। दीन-दुखियों की तरफ देखकर, असहाय बहनों को देखकर तथा निराश्रित बच्चों को देखकर दिल में रहम पैदा कर तथा देने के लिए हाथ बढ़ा !'
शखावत अथवा दान करने का आग्रा क्यों किया गया है ? इसलिए कि दान देने से ही मनुष्य का नसीब खुलता है दूसरे शब्दों में पुण्य कर्मों का संचय होता है। आप लोग व्यवसाय में कम्पनियों या फैक्टरियों के हिस्से ( शेयरों) खरीदते हैं, कि भविष्य में इनसे लाभ होगा। दया तथा दान आदि भी ऐसे ही हिस्से हैं जिनसे केवल इसी जन्म में नहीं, वरन् अनेक जन्मों तक भी लाभ की सम्भावना होती है। पर वह लाभ हो कैसे, जबकि आम प्रयत्न ही न करें। बिना बीज बोये भी कभी फसल लहलहाती है ? नहीं। फसल पाने के लिए बीज बोना ही पड़ेगा। इसी प्रकार अगर पुण्य कर्म रूपी फसल करनी है तो दान रूपी बीज भी जीवन में बोने पड़ेंगे।
आगे कहा गया है :
सखावत बसे ऐवरा क्रीमियास्त । सखावत हमा दर्द हगा दवास्त ॥
ने बड़ी मार्मिक छात कही है। वे कहते हैं -
शेख सादी साहब यानी दान ऐसी चीज है जो इन्सान के समस्त ऐबों पर पर्दा डाल देता है।
सखावत
हम प्रायः देखते हैं कि
अनेक सेट - साहूकार गरीबों का खून चूस चूसकर धन इकट्ठा करते हैं तथा उस धन को अपने भोग-विलास, मदिरा पान या सैर-सपाटे में उड़ाते हैं किन्तु समय-समय पर कोई 3 छोटी-सी रकम भी दान के नाम पर दे देते हैं तो लोग उन्हें दानी मानकर बड़ी प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं। इसी को कहते हैं दान के द्वारा अपने अनेकानेक अवगुणों को ढक देना। शेर में दूसरी बात यह बताई गई है कि तमाम दर्दों की दवा भी रुखावत ही है। दान के अन्दर शारीरिक