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________________ • [२५५] आनन्द प्रवचन : भाग १ [२२] Rama A RRIAN दुर्गति-नाशक दान । HISTORIES धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो! आज हमें मनुष्य -जन्म रूपी वृक्ष के छ: फलों में से चौथे फल पर विचार करना है। वह चौथा फल है - 'शुभपात्र दानं।' इसका भावार्थ यही है कि दान शुभ कार्य के लिये दिया जाय तथा योग्य पान को दिया जाय। शुभ-पात्र शब्दों का रहस्य यद्यपि केवल 'दान' शब्द भी अपने आप में सम्पूर्ण है और प्रत्येक वह, जो कुछ दिया जाता है दान कहलाता है। फिन्तु आचार्य सोमप्रभसूरी ने दान से पहले शुभ पात्र शब्द क्यों जोड़े हैं, हमें इसके रहस्य को भी जान लेना चाहिये। जिस प्रकार अंधेरे में ढेला फेंकने से। निशाना चूकने की सम्भावना रहती है, उसी प्रकार बिना पात्र की पहचान किये दान देने से भी परिणाम उलटा निकलने की सम्भावना होती है। उदाहरण स्वरूप एक रिद्र किन्तु सदाचारी विद्वान को दान दिया जाए तो वह उस दान का उपयोग अपनी ज्ञान वृद्धि में और उसके पश्चात् औरों की ज्ञान-वृद्धि में करेगा। किन्तु वही दान अगर एक कसाई को प्राप्त हो गया तो कसाईयों की पूरी एक टुकड़ी को प्रोत्साहन मिल जाएगा। आपको यह सुनकर आश्चर्य हुआ होगा। किन्तु मैं एक पद्य से इसे स्पष्ट कर देता हूँ कि कसाईयों की वह टुकड़ी कौनसी पद्य में बताया गया है: प्रथम कसाई पशु मारवे की सलादेत, दूसरो कसाई जो पशु यो मारि डारे है। तीजो अंग न्यारो करे, चौथो मोल लेनेवालो, पाचवो कसाई माँस बेन सो उच्चारे हैं। छ8ो जो पकावे मांस, सातमो पलसे धाल, आठमो कसाई खाये मतन हारे है। मनुस्मृति में यो अमीरिख मनुजी महत, हिंसक कसाई दुष्ट आर्दा ही हत्यारे हैं।
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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