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________________ • [२५३] आनन्द प्रवचन : भाग १ सभी सद्गुण धीरे-धीरे मानव के हृदय में प्रवेश कर जाते हैं। जैसे चुम्बक लोहे की सभी वस्तुओं को अपनी ओर खींच लेता है, उसी प्रकार एक दया ही अगर चित्त में बनी रहे तो वह अन्य सद्गुणों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। तथा मनुष्य-पर्याय को सार्थक बना देती है। जो व्यक्ति सचे हृदय से दया को अपना लेता है वह मरते-मरते भी उसे नहीं छोड़ता। एक उदाहरण है-- पानी पी लो! रणक्षेत्र में दो घायल योद्धा पड़े हुए थे। उनमें से एक इंग्लैंड के सुप्रसिद्ध लेखक और वीर सर फिलिप सिडनी थे जी महारानी एलिजाबेथ के शासन काल में हुई लड़ाई के समय घायल होकर रणवत्र में गिर पड़े थे, और दूसरा एक साधारण सिपाही था। सर फिलिप सिडनी की प्यास बुझाने के लिये कुछ सिपाही दौड़कर गए और बड़ी कठिनाई से खोजकर एक प्याले में थोडल सा जल लाए। सर फिलिप ने प्याला हाथ में लिया और पानी पीने का प्रयास करने लगे किन्तु वे जल पीते उससे पहले ही उम्की दृष्टि समीप ही पड़े हुए उस घायल सिपाही पर पड़ी जो अत्यन्त तृषातुर था तथा एक टक उनके हाथ में रहे हुए प्याले की ओर देख रहा था। सिडनी को दया आई। उन्होंने विचार किया कि मरना तो हम सभी घायल व्यक्तियों को है। कुछ समय पीछे या पहन। फिर ऐसी हालत में भी मुझे अगर किसी की सेवा करने का मौका मिल रहा है तो इससे बढ़कर सौभाग्य मेरा और क्या हो सकता है? यह विचार आते ही उन्होंने अपने पास पड़े उस सिपाही की ओर प्याला बढ़ा कर कहा - "भाई! तुम प्यासे हो, लो यह प्याला. और जल पीकर अपनी प्यास बुझाओ।" सिपाही सिडनी की दया-भावना से गद्गद् हो गया। बोला -- "नहीं सर! आपको भी तो प्यास लगी है। आप ही इस जल को ग्रहण कीजिये।" तब सिडनी ने जबर्दस्ती प्याले को सिपाही के हाथों में थमा दिया। यह कहते हुए - "इस समय पानी की आवश्यकता मुझसे अधिक तुमको है। लो पी लो!" इस प्रकार दयालु सर फिलिप सिननी मृत्यु शैय्या पर पड़े हुए भी परोपकार से नहीं चुके। स्वयं प्यासे रहते हुए भी उन्होंने दूसरे घायल सिपाही को जलप्रदान कर दिया। अपने मुँह में उसमें से एक बूंद भी नहीं डाली। दयालुता का इससे बढ़कर उदाहरण और क्या हो सकता है?
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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