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________________ • अमरत्वदायिनी अनुकम्पा [२४६] - जिस द्विज से जीवों को तनिक भी भय नहीं लगता, वह जब परलोक में जाता है तो उसे किसी से भी भय नहीं लगता। अर्थात् जिस ब्राह्मण ने इस जीवन में अहिंसा का पूर्णरूप से पालन किया है, वह इतरलोक में पूर्णत: निर्भय रहता है। ईसाई धर्मशास्त्र इजील का मत भी है --- Thou Sholt not kill -- तू किसी की भी हिंसा नहीं करोग। इनके अलावा जिस मुस्लिम जोतेि को हम निर्दयी मानते हैं, उनके एक बड़े आलिम फाजिल महापुरुष शेख सान ने अपनी फारसी भाषा में लिखी हुई 'करीमा' नामक पुस्तक में अनुकम्पा के विषय में लिखा है - करम मायए पादमानी बुवद, करम हामिले जिंदगानी बुवद। फारसी भाषा में दया को कस्म या रहम कहते हैं, तथा करम या रहम करने वाले ईश्वर को करीम और रहीम के नाम से सम्बोधित किया जाता है। करम करने वाला करीम और रहम करने वालारहीम। तो 'करीमा' पुस्तक के इस पत्र में यही कहा गया है -- जिस व्यक्ति ने करम को हासिल किया, अर्थात् संसार के जीवों पर मेहखानी की समझो कि उसने अपनी जिन्दगी को सफल बना लिया। आगे कहा है - वराये करम दा जहाँ कार नेस्त, वर्जी गफार हेच बाजार नेस्त। अर्थात् दया के बिना दुनियाँ में, कोई काम, काम नहीं है। कार का मतलब है कार्य। तथा कारखाने का अर्थ है वर्य करने का स्थान। तो शेखसादी साहब संसार को कारखाना मानते हैं, जिसमें किये जाने वाले सभी कार्य दयापूर्ण हों। आगे कहते हैं - इससे बढ़कर : कोई गर्म बाजार दूसरे का नहीं है। बाकी सब ठण्ढ़े बाजार हैं। आप जानते ही हैं कि जब तक बाजार गर्म होता है, अर्थात् भाव चढे हए होते हैं. आप उससे कगई करते हैं और बाजार भाव ठंढा होने पर या मंदा होने पर कुछ भी लाभ नहीं उठाया जा सकता। तो कविने बहुत ही गूढ बात कही है कि दया का बाजार गर्म है और इस बाजार से अपने रहम रूपी माल का जो गो लाभ उठा सको उठा लो! अब मराठी भाषा में क्या कहा गया है यह देखिये! इसमें हिंसक या दया हीन मनुष्य को बुरी तरह फटकारा है। कहा है -
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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