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बलिहारी गुरुं आपकी...
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देव, गुरु और धर्म में गुरु का पद मध्यस्थ है और मध्यवर्ती होकर वे देव और धर्म की पहचान कराते हैं। नमस्कार मंत्र में भी आप जानते ही हैं कि पाँच पद होते हैं। अरिहन्त और सिध्द फाले, उसके पश्चात् आचार्य अर्थात गुरु और बाद में उपाध्याय तथा साधु।
मध्यवर्ती होने का महत्त्व आप जानते ही होंगे। एक उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाएगा। आप अपनी तस्वीर खिंचवाते हैं। अगर परिवार के सम्पूर्ण सदस्यों के साथ तस्वीर खिंचवाई जाती है तो आप अपने पिता, दादा या अन्य गुरुजनों को सबके मध्य में बिठाते हैं क्योकि वे आपसे बड़े और पूज्य होते हैं। इसके अलावा कोई बड़ा नेता, मिनिस्टर या अन्य सन्मानीय व्यक्ति आ जाएँ तो आप उसे अपने शिक्षकों के भी मध्य में बैठने के लिए कुर्सी प्रदान करते हैं, तथा तस्वीर खिंचवाते
इससे साबित होता है कि व्यक्ति सबसे अधिक महान् और उच होता है उसे अन्य सब के मध्य में प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त होता है। इसी प्रकार गुरु को महान् होने के कारण देव, गुरु तथा धर्म में और नमोकार मंत्र के पाँच पदों में भी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मध्य-स्थान दिया गया है। गुरु कैसे होने चाहिए?
बन्धुओ, अब हमारे सामने यह प्रश्न है कि गुरु कैसे होने चाहिए? आज के युग में गुरु कहलाने वालों की कमी नहीं है। अपने प्रत्येक शिक्षक को आप गुरु कहते हैं। किन्तु उनके द्वारा जो शिक्षा छात्रों को प्राप्त होती है, क्या वह पूर्ण कही जा सकती है? नहीं, आज तो शिक्षा आदर्श और पूर्ण कदापि नहीं मानी जा सकती। आज के शिक्षक अपने विषय की पाठ्य-पुस्तकें छात्रों को पढ़ा देते हैं, उनमें रही हुई बातें रटा देते हैं। और छात्र भी जैसे-तैसे विषय को स्ट-रटाकर परीक्षाएँ पास कर लेते हैं और डिग्रीयाँ लेते हैं। पर उससे क्या होता है? केवल ऊँची-ऊँची पदवियाँ और नौकरियाँ हो तो प्राप्त हो सकती हैं। उस शिक्षा से शिष्यों का जीवन कहाँ उच्च बनता है?
जिस शिक्षा के द्वारा छात्रों में शिष्टता, सदाचार, विनय, अनुशासन, कर्तव्यपरायणता तथा सेवा आदि की भावनाएँ जन्म न लें, उनमें नैतिकता और धार्मिकता के अंकुर न फूटें उस शिक्षा से क्या लाभ हो सकता है? कुछ भी नहीं। उलटे उसका परिणाम भयानक ही दिखाई देता है। आए दिन हम सुनते हैं कि अमुक स्कूल के विद्यार्थियों ने अपने मास्टरों को गालिगा दी और पीटा अथवा अमुक कालेज के छात्रों ने प्रोफेसर को छूरा दिखाकर मार डालने की धमकी देते हुए परीक्षा के समय अपनी कॉपी में नम्बर बढ़वा लिए। बात-बात में विद्रोह करना तो स्कूल और कॉलेज के छात्रों का खेल ही हो गया है।
यह सब क्यों होता है? इसलिए कि, आज के शिक्षक छात्रों को महीने