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________________ (२३०] • मानव जीवन की महत्ता निर्देशित मार्ग पर चलना ही भाव-पूजा और सच्ची पूजा है। एक श्लोक में भाव-पूजा का महत्त्व बताते हुए लिखा है : यः पुष्पैर्जिनमर्चति स्मित सुरखी लोचनैः सोऽयंते, । यस्तं वंदति चैकशखिजगतां सहिर्निशं बंद्यते। यस्तं स्तौति परत्रवृत्रदमनस्तोमेन स स्तूयते, यस्तं ध्यायति कृत्स्नकर्मनिधन: स ध्यायते योगिभिः । जो प्राणी जिनेश्वर भगवान की पूजा करता है, उसकी पूजा देवांगनाएँ स्वयं ही अत्यन्त हर्षित होती हुई तथा मधुर मुस्कानें चेहरे पर लिए हुए करती हैं। पर वे पूजा किस पुजारी की कती हैं? वृक्ष से तोड़कर लाये हुये फूलों से जिनेश्वर की पूजा करने वाले पुजारी दो नहीं, वरन् अन्तरात्मा की प्रगाढ़ श्रध्दा रूपी सुमनों से जो जिनेन्द्र की पूजा करता है उसकी। कहा भी है - "भक्त्या तुष्यात केवलम्।" भगवान केवल भक्ति से अर्थात् सध्दापूर्वक जाप करने से ही प्रसन्न होते दृढ़ श्रध्दा और अन्तरतम की प्रगाढ़ भक्ति जिसके हृदय में जिनेन्द्र के प्रति होती है वही पुरूष देवांगनाओं द्वारा राजित होता है तथा देवताओं को अपने चरणों में झुका सकता है। वे ही देवता जो सच्चे भक्तों को, सचे धर्म के अनुयायियों को तथा पतिव्रता नारियों को धर्म से डिपाने आते हैं, स्वयं ही हार मान लेते जो जिनेन्द्र भगवान को सुबह-शाम । वंदन करते हैं वे सन्त-मुनिराज अन्य प्राणियों के द्वारा रात-दिन वंदन करने लायक बनते हैं। आप देखते ही हैं, दो वक्त नियमित रूप से वंदन करने वाले सन्नों को रात-दिन प्राणी वंदन करते हैं। यह भाव-पूजा का ही माहात्म्य है। साधु का इतना महत्त्व क्यों माना जाता है इस विषय में बताया गया है : महाव्रत पंच आदि सप्तविंश गुण कामें, जानि दुःख मूल जग भाग भये त्यागी हैं। निशदिन करत अभ्यास जिन आगाम को, आतम स्वरूप साथवे और मति जागी है। पुदगल चाह तजी, बाराविध धारे रूप, परीषह दुक्कर सहत शिवनागी है। कहे अमीरिख सबे करम कलंग मेधि, पामें मोक्षवास ऐसे साधु-बड़भागी हैं। बंधुओ, दिन-रात वंदन करने योग्य वाति सहज ही नहीं बन जाता। उसको
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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