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आनन्द प्रवचन भाग १ जा सकता क्योंकि वह अपना प्रकाश स्वयं ले चलता है। अतः प्रत्येक प्राणी को अगर अपनी आत्मा का कल्याण करना है, तो उसे सर्वप्रथम आत्मा में सत्य का प्रकाश करना होगा। और उस प्रकाश के सहारे से उन्नति के पथ पर बढ़ना होगा।
जब अन्तःकरण सत्य-मय हो जाता हैं तो मानव का स्वयं ही विकास होने लगता है तथा मिथ्यात्व का अन्धकार नष्ट को चलता है। क्योंकि अपनी सत्यमय दृष्टि से साधक जो कुछ भी ग्रहण करता है वह सम्यन्न होता है।
कबीर को सत्य धर्म पर कितना दृढ विश्वास था ! उनका कथन है :
साँचे साप न लागई, साँचे काल न खाय
साँचे को साँचा मिले, साँचे मांहि समाय ॥
सीधी-सादी भाषा में कितनी सुन्दर बात कही गई है कि सत्य को कभी किसी का श्राप नहीं लगता, उसे काल नहीं खा सकता तथा सत्य धर्म ग्रहण करने वाले का उसी के समान भव्य प्राणियों से मितन होता है और अन्त में वह उस सत्य-रूप ईश्वर में ही समा जाता है।
इसलिये प्रत्येक मुक्ति के अभिलाषी शाणी को सत्य धर्म अंगीकार करना चाहिये और विश्वास रखना चाहिए कि उसके ग्रहण करने पर आत्मा में अन्य समस्त सद्गुणों का स्वयं ही आविर्भाव हो जाएगा लथा वह कर्म रहित होती हुई अन्त में अमरत्व की प्राप्ति करेगी।
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