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________________ • [२१३] - आनन्द प्रवचन : भाग १ जो कि व्रत-नियम तथा त्याग-प्रत्याख्यान आदि क्रियाओं से रहित है। इसलिए मुक्ति के अभिलाषी प्रत्येक गानव को अपनी आत्मा, चारित्र-गुण से अलंकृत करनी चाहिए। तथा उसे सच्चे अर्थों में चारित्र-आत्मा साबित करनी चाहिए। ८. वीर्य-आत्मा जो व्यक्ति सम्यक्ज्ञान को धारण करना है, श्रध्दा के रहस्य को समझ लेता है तथा चारित्र का भली-भाँति बोध कर लेता है और उनको अपने पराक्रम से अमल में लाता है, उसका यह सब प्रयत्न या पुरुषार्थ वीर्य-आत्मा में प्रवेश करता है। चाहे मानव साधु के रूप में हो या साध्वी के रूप में, श्रावक के रूप में हो या श्राविका के रूप में। सभी को अपनी शक्ति के अनुसार ज्ञान, दर्शन और चास्त्रि की आराधना करनी चाहिये। इन सब का बोध प्राप्त करके उन्हें जीवन में उतारना चाहिये। यह पुरूषार्थ से तथा पत्रक्रम से ही हो सकता है। क्योंकि जानकारी हो जाने पर भी तथा श्रध्दा जमजा पर भी अगर उन बातों को अमल में लाने के लिये पुरूषार्थ नहीं किया जायगा, उन्हें आचरण में नहीं उतारा जाएगा तो आत्मा का उध्दार होना कभी भी संभव नहीं है। इसलिये मानव को अपना विवेक जागृत करना चाहिये तथा अपनी अकरात्मा को विशुध्द बनाने का प्रयास कभी भी छोड़ना नहीं चाहिये। एक भजन में आत्मा को उद्बोधन देते हुए कहा गया हैं : विवेक आत्मा रे, अरे तू अब निर्मल होजा! कहा है - हे विवेकी आत्मा! अब तो तू निर्मल बन। अपने अविवेक रूप कूड़े-करकट को हटाकर अपने आपको पूर्ण शुद्ध बना। विवेक ही बुध्दि की पूर्णता तथा ज्ञान का परिपाक है। जीवन के सभी मार्गों पर वह हमारा पथ-प्रदर्शन करता है। जिसके हृदय में विवेक जागृत रहता है वह कभी भी ठोकर नहीं खाता। कबीरदास जी व्त कथन है: समझा समझा एक है, अनसमझा मब एक। समझा सोई जानिये, जाके हृदय क्वेिक।। समझदार केवल उसी व्यक्ति को माना जा सकता है, जिसके हृदय में विवेक हो। अन्यथा तो ज्ञानी और अज्ञानी में कोई अन्तर नहीं है। इसलिये भजन में कवि ने अपनी आत्मा से कहा है - हे आत्मा! तू विवेकी बन। दूसरों को नसीहत देने की अपेक्षा अपने आप को समझो। दूसरों को उपदेश देने वाले तो बहुत मिल जाएँगे। कहा भी जाता है : 'परोपदेशे पाश्त्यि ।'
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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