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आनन्द प्रवचन : भाग १
समस्त कर्मों की निर्जरा करके अपनी आत्मा को शुद्ध-बुद्ध बना कर मानव पर्याय सार्थक करते हैं।
जैनधर्म की महत्ता बंधुओ, आशा है कि आपने आहेसा, संयम और तप रूप मंगलमय धर्म के स्वरूप को समझ लिया होगा। इस में संदेह नहीं है कि आज जैन धर्म के अनुयायिओं की संख्या अधिक नहीं है। अत्यल्प है किन्तु दीर्घदृष्टि से देखा जाय तो स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है कि जैनधर्म के सिद्धांतों का प्रभाव आज भी प्रत्येक धर्म के अंदर झलक रहा है। भगवान महावीर के उपदेश आज भी जगत का मार्ग-दर्शन कर रहे हैं।
इसका कारण यही है कि जैन धर्म ने धर्म की यह जो परिभाषा दी है, उसके अनुसार धर्म किसी देश, काल या जाति के लिए नहीं है, यह तो सार्वदेशिक, सार्वकालिक और सार्वजनिक धर्म है। जीवन के दो अंग होते हैं। आचार और विचार। जैन धर्म ने आचार में सर्वप्रथम अहिंसा का स्थान दिया है तथा विचार में अनेकान्तवाद को स्थान देकर अपनी महत्ता को बढ़ाया है। अहिंसा के द्वारा जहाँ इसने समस्त सृष्टि की मंगल कामना की है, अनेकान्ता के द्वारा सभी धर्मों के पारस्परिक विरोध को नष्ट करने का प्रयत्न किया है।
इन सब लक्षणों पर विचार करने से यही मालूम होता है कि धर्म मानवमात्र के लिए ही नहीं वरन् प्राणी मात्र की सुख-समृद्धि और उसके अभ्युदय के लिए है। धर्म संसार के समस्त जीवों के लिए वरदान रूप बन कर इस भूमण्डल पर अवतरित हआ है। धर्म ही मानव में मानवता की प्रतिष्ठा करता है तथा दानवीय वृत्ति को निकालता है। इसकी प्रेरणा के अभाव में मानव जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता और सिद्धि हासिल नौं कर सकता। इसीलिए आवश्यक है कि वह धर्म को परखे तथा उसकी रक्षा करे।
धर्म की परख और उसकी रक्षा हमारा भारतवर्ष अनेक धर्मों का संगम स्थान है अत: अनजान व्यक्ति जब धर्म की परख करने जाता है तो चक्कर में पड़ जाता है कि सच्चा धर्म कहाँ है? वह नहीं जान पाता कि धर्म को वह मन्दिर में ढूँढे या मसजिद में, गिरजाघर में देखे या गुरुद्वारे में। वह देखता है कि जितने भी धर्मावलम्बी हैं वे सब अपनी अपनी क्रियाओं में ही धर्म का निहीत हेना मानते हैं। ऐसे भ्रम में फंसे हुए व्यक्तियों को भगवान महावीर का निर्णय ही उनकी संशयास्पद स्थिति से उबार सकता है।
‘पन्नासमिक्खए धमा तत्तं तत्तविणिच्छियं।' - वास्तविकता की कसौटी पर कसे हुए धर्म तत्त्व की अपनी बुद्धि से ही परीक्षा की जा सकती है।
विश्व के अनेक विचारकों ने धर्म की भिन्न-भिन्न व्याख्या की हैं तथा