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________________ • [१९६] भावना और भक्ति नहीं होती उसी प्रकार मुमुक्षु प्राणी अपर कुटुम्ब का पालन-पोषण करते हुए भी उनसे प्रगाढ़ मोह न रखे। इस प्रकार का सम्यकदृष्टि प्राणी ही शिव-साधन कर सकता है, अपनी आत्मा को कर्म-युक्त कर शिगपुर ले जा सकता है। आत्मा जब परमात्मा पद को प्राप्त करने का प्रयत्न करती है तो उसका प्रथम चरण भक्ति ही होता है। भक्ति ही आत्मा को परमात्मा बनने का एक सरल साधन और मार्ग है। पर यह होनी चाहिए भावना युक्त। भक्ति का दिखावा आत्मा को उसके लक्ष्य तक नहीं पहुँचा सकता। इसलिए आवश्यक है कि प्रत्येक शुभ-क्रिया के पीछे शुध्द भावना हो। अन्यथा शुभ-भावनाओं के अभाव में शुभक्रियाएँ भी निष्फल हो जाएँगी और यह दुर्लभ मानव जीवन व्यर्थ चला जाएगा। किन्तु इसके विपरीत संसार में रहते हुए भी हमारी भावनाएँ संसार से अलिप्त रहकर आत्मा-मुक्ति के प्रपत्नों में लगी रहेंगी तो उनके परिणामस्वरूप हमें जन्म-मरण से छुटकारा मिलेगा और अक्षय सुख की प्राप्ति होगी।
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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