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________________ • [१९७] आनन्द प्रवचन : भाग १ [१७ -- MANDIRMIONARY रक्षाबंधन का रहस्य धर्मप्रेमी बंधुओं, माताओं एवं बहनों! आज रक्षा-बंधन का दिवस है। इसे 'राखी पूर्णिमा' कहा जाता है। हमारा भारतवर्ष एक पर्व प्रधान देश है। संसार के समस्त देशों की अपेक्षा यहाँ पर अधिक पर्व, अधिक त्यौहार मनाए जाते हैं। रक्षा-बंशन का यह दिन भी इन्हीं में से एक है। यह दिन मानव को रक्षा करने की प्रेरणा देता है। पर समझने की बात यह है कि रक्षा किसकी करनी चाहिये ? रक्षा का मूल रहस्य साधारणतया रक्षा-बंधन का महत्वाहनों का भाई को राखी बाँधना और उससे अपनी रक्षा के लिये अप्रत्यक्ष प्रार्थना करना माना जाता है। और कोई इसके अधिक दूर आए तो संसार के अन्य प्राणियों की रक्षा करना भी मान लेता है। किन्तु हमारा धर्म रक्षा के महत्व को उससे भी अगी ले जाता है। हमारे यहाँ आठ प्रकार की दया मगनी जाती है। उनमें से एक स्व-दया और दूसरी पर-दया है। पर-दया का अर्थ तो आप भली-मॉति जानते ही हैं कि अपने से अन्य जो समस्त पर-प्राणी हैं ान पर दया करना और उनकी रक्षा करना। किन्तु जो स्व-दया बतलाई गई है उसका मतलब आप में से सभी शायद नहीं जानते होंगे। स्व-दया का अर्थ है अजो आप पर दया करना, अपने आपकी रक्षा करना। आपको कुतूहल होगा कि अपनी दया के विषय में भी कहने की आवश्यकता है क्या? अपने आपको कौन कष्ट देता है। मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी अपने आपको कष्ट नहीं देता। वह भरसक स्वयं को दुःख और कष्टों से बचाने का प्रयत्न करता है। भाइयो! अगर आप ऐसा विचार करते हैं तो आपका विचार गलत नहीं है। प्रत्येक मानव अपने आप पर दया करता है तथा रंच-मात्र दुख भी स्वयं को देना नहीं चाहता। किन्तु उसको समझ में थोड़ी सी भूल रह जाती है। वह भूल क्या है? यही कि, अपने आपको वह अपार शरीर मात्र ही मानता है। तथा शरीर को ही अधिक से अधिक सुख पहुँचाने की व तनिक भी कष्ट न देने की कोशिश करता है।
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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