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अब थारी गाड़ी हॅकबा में
प्राण देकर भी परोपकार करने वाले से महापुरुष जन्म-मरण के दुखों को नष्ट करके शिव-सुन्दरी का वरण करते हैं।
मेरे कहने का अभिप्राय यही है कि अगर हृदय में आक्रोश का साम्राज्य रहता है तो वह बुद्धि, बल, शक्ति और क्षमता आदि सभी गुणों का दिवाला निकाल देता है। किन्तु अगर मानव आक्रोश पर विजय प्राप्त कर लेता है तो उसका आत्मबल बढ़ता है तथा वह मुक्ति-मार्ग पर चलने की क्षमता प्राप्त करता है। ऐसा मनुष्य ही मृत्यु के पश्चात् पुन: मनुष्य जन्म प्राप्त कर सकता है।
मराठी भाषा में एक सुन्दर पद्य है। जिसमें प्रश्न भी है और उत्तर भी। वह इस प्रकार है
मोठा कोण म्हणावा? साधु सेवा दयालु जो त्याला।
स्या वाचुनी इतर नर पडले नाही काम जो त्याला॥ एक ही पद्य में कवि ने बड़े सुन्दर रंग से प्रश्न किया, उत्तर दिया और उपदेश भी दे दिया है।
संसार में बड़ा कौन है? हम किसे डा कहें? यह प्रश्न है। अगर लोगों से इसका उत्तर माँगा जाय तो वे यही कहेंगे.- बड़ा वही है जिसके पास रुपया है। प्रचुर मात्रा में धन-माल का जो अधिकारी हो वही एक मत से बड़ा आदमी माना जाता है।
उस व्यक्ति को कोई बड़ा नहीं कहता जो चतुर है बुद्धिमान है और शास्त्रों का जानकार है, पर जिसके पास लक्ष्मी नहीं है। संसार की दृष्टि ऐसी ही है। लक्ष्मी के अभाव में वह किसी को बड़ा ना समझता। वह यह नहीं समझता कि पैसे वाला ही बड़ा कैसे हुआ? क्या पैगा परलोक में तार देगा? क्या पैसा जीव को नरक गति में जाने से बचा लेगा?
नहीं, हमारे शास्त्रों के अनुसार बड़ा व्याक्ते वह होता है जो अपनी आत्मा को निर्मल बनाने का प्रयत्न करता है तथा उसे कर्म-रहित करता हुआ मुक्ति-पथ पर बढ़ता है। पर वह ऐसा किस प्रकार कर सकता है? इसी के लिए मराठी पद में बताया है कि जो त्यागवृत्ति को अपनाता है, अपने से अन्य समस्त जीवों पर दया भाव रखता है तथा संतों की सेवा में निमग्न रहता है।
संतों की सेवा से मेरा अभिप्राय यह नहीं है कि आप उनकी शारीरिक सेवा शुश्रुषा करें या. धन-पैसे से सहायता करें। संत : यह सब कुछ नहीं चाहते उनकी सेवा भक्ति इसी में है कि आप उनके आचरण से राक्षश ग्रहण करें तथा उनके सदुपदेशों को हृदयसंगम कर जीवन में उतारें । संतों की सची सेवा है, उनसे सद्ज्ञान हासिल करना तथा त्याग व प्रात्याख्यान करते हुए उत्तम नियमाँ को अपनाना।