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अब थांरी गाड़ी हॅकबा में बरसाता है, उसी प्रकार सञ्जन और भता व्यकि दूसरों की कटुवाणी सुनकर भी सदा मधुरवाणी ही बोलते हैं।
इस प्रकार जो व्यक्ति प्रकृति से ही भद्र होता है। करुणा, परोपकार, नैतिकता, इमानदारी आदि उत्तम गुणोंसे विभूषित होकर सदाचरण युक्त जीवन व्यतीत करता है वह पुन: मनुष्य-जन्म का बंध कर सकता है।
मनुष्य-गति के बंध का दूसरा हेता है - प्रकृति से ही विनय-गुण सम्पन्न होना ।विनय का हमारे यहाँ बड़ा भारी महत्त्व माना गया है। क्योंकि"विनयायत्ताश्च गुणाः सर्वे।"
-प्रशमरति समस्त गुण विनय के ही अधीन होते हैं।
अगर व्यक्ति में एकमात्र गुण विनय ही हो तो धीरे-धीरे अन्य अनेक सदगुण उसमें आ जाते हैं। किंतु विनय के अभाव में व्यक्ति के पास चाहे प्रचुर मात्रा में धन हो, या पांडित्य हो, वह फीका लगता है। कहते भी है :"पांडित्ये सति नमत्वं कोरोऽयं कनकोपरि।"
---- सूक्ति रत्नावली विद्वता के साथ विनय होना, सोने के ऊपर हीरा होने के समान है।
बच्चे के समान हूँ न्यूटन एक महान प्रतिभाशाली वैज्ञानिक थे। उन्होंने केवल बाईस वर्ष की अवस्था में ही बीजगणित के द्विपद सिद्धांत का आविष्कार किया था। और बाद में सूर्य की किरणों में सात रंग क्यों हैं। समुद्र में ज्वार-भाटा क्यों आता है? सूर्य और चन्द्र क्षीण कैसे हो जाते हैं तथा फिर पूर्ण कैसे होते हैं। इन सब प्रश्नों का गम्भीरता पूकि अध्ययन करके पुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का आविष्कार किया था। उनके चिन्तन एवं विद्वत्ता पर आज भी समस्त यूरोप को गर्व है।
उन्हीं महान वैज्ञानिक के पास एक बार एक महिला आई और आंतरिक सत्यतापूर्वक उनकी प्रतिभा और ज्ञान की प्रशंसा करने लगी।
महिला द्वारा की गई प्रशंसा सुनकर न्यूटन ने बहुत चकित होकर कहा - "बहन, तुम क्या कह रही हो? मैं को उस बालक के समान हूँ जोकि सत्य के विशाल समुद्र के किनारे पर बैठा हुआ केवल कंकर ही बीनता रहता है। ज्ञान के असीम सागर में तो मैंने अभी तक प्रवेश ही नहीं किया है।"
__ आगन्तुक महिला महाविद्धान न्यूटन। की विनम्रता देखकर बड़ी चकित हुई और स्वयं ही उनके समक्ष नत हो गई।
इस प्रकार जो व्यक्ति प्रकृति से हो विनम्र होते हैं, आगे जाकर महापुरुष