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________________ • अब थारी गाड़ी हैकबा में [१७६] किन्तु छोटे गांव में आज भी व्यक्ति बड़े भद्र और सरल होते हैं। अपने बड़े-बड़े झगड़े भी वे अपनी पंचायतों में ही निपटा लेते हैं। इसके अलावा सदाचार का गुण उनमें विशेष रूप से होता है। एक व्यक्ति की बेटी और बहू सारे गांव की बेटी और बहू मानी जाती है। भद्र व्यक्ति सदा पर की भलाई तथा स्व-कल्याण में प्रयत्नशील रहते हैं। हृदय की भद्रता या सरलता आत्मा को अत्यन्त शांतिमय अवस्था में पहुँचा देती एक बार स्वामी विवेकानन्द ट्रेन में सफर कर रहे थे। जिस डिब्बे में वे बैठे थे, उसी में दो-तीन अंग्रेज यात्री भी ठे हुए थे। स्वामीजी अपनी स्वाभाविक शांति से बैठ रहे, किसी से कुछ भी नहीं बोले। अंग्रेजों ने एक हिन्दुस्तानी और मरुआ वस्त्रधारी व्यक्ति को चुपचाप बैठे देखा तो उनका उपहास करना प्रारम्भ कर देया। स्वामीजी के बारे में उन्होंने बहुत ही अपमानजनक शब्द कहे और बीच-बीच में गानियां देने से भी नहीं चूके। कुछ समय पश्चात् एक स्टेशन आया। वहाँ पर स्वामी जी ने स्टेशन मास्टर को बुलाया और शुद्ध अंग्रेजी में उससे कहा - रुपया थोड़ा पानी मंगा दीजिये!' अंग्रेज उनकी ओर देख ही रहे थे। उन्हे शुद्ध व स्पष्ट अंग्रेजी में बोलते देखकर कुछ शर्मिन्दा हुए। तथा बोले - "आप अंग्रेजी जानते हैं, तब तो हमारी बातें सुनकर आपको बहुत क्रोध आया होगा? अग कुछ बोले तो नहीं ?" विवेकानन्द जी ने मुस्कराते हुए कहा - "मेरा तो आप जैसे भद्र व्यक्तियों से कई बार सम्पर्क होता है। व्यर्थ में क्रधि करके मैं अपनी शक्ति का अपव्यय क्यों करूँ?" भद्रता की पहचान कराने वाला एक उदाहरण और भी है। मलिक दिनार बड़े तपस्वी, अत्यन्त । सरल और पवित्र हृदय के सन्त थे। एक बार वे कहीं जा रहे थे, रास्ते में उन्हें एक सी ने कपटी कहकर पुकारा। दिनार ने बिना चेहरे पर शिकन लाए अत्यन्त आदर और विनयपूर्वक तुरंत ही उस स्त्री से कहा --- "बहन! तुमने मुझे ठीक पहचाना है। वास्तव में ही इतने दिनों में मेरा सचा नाम लेकर पुकारने वाली मुझे तुम एक ही मिली हो।" भद्रता के यही लक्षण होते हैं। भद्र व्यक्ति इसके द्वारा की गई निंदा, उपहास और अपमान का बदला भी सम्मान के रूप में देश है। कहा भी है : विप्रियमप्याकण्यं ब्रूते प्रियमेव सदा सुजनः। क्षारं पिबति पयोधेर्वपत्यम्भोधरो मधुरम् ॥ -- जिस प्रकार बादल समुद्र का खारा जल पीकर भी सदा मीठा जल
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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