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अनमोल सांसें...
आप जानते ही होंगे कि मनुष्ण के सुखों से देवताओं का सुख अनन्त गुना तथा देवताओं के सुख से सिद्धों का सुख अनन्त गुना अधिक है। इसलिये मुक्ति-धाम पहुँचो, जहाँ सब कार्य सिद्ध हो जावें।
इस संसार में तो सैंकड़ों आकश और बन्धन हैं। माता-पिता, भाई -बहन, पली और बेटे पोते हैं। उन सबके पालन-पोषण का प्रबंध करना होता है। मकान नहीं बन पाया इसकी चिन्ता रहती है। व्यापार में नफा-नुकसान होता है उसकी फिक्र होती है। सारा जीवन इन्हीं सब समस्याओं को सुलझाने में बीत जाता है
और जब अन्त-समय आता है तब पशवत्ताप होता है तथा भगवान की याद आती है। उस समय प्राणी कहता है :
नर-देह पायो पै कमायो धरम लाभ,
कीनो न उपाय भव सिन्यु के तरन को। सोय के गमाई निशि, काम में बितायो दिन,
लागो उद्वेग हाय! उदर भरन को। कहे अमीरिख कूर काजा अकाज ठान,
थार्यो ना धमाधव भीति के हरन को। पर्यो मझधार अब कीजे का विचार नाथ,
मोकों तो भरोमो दृढ रावरे चरण को। क्या सोचता है मनुष्य? यही कि, 'मनुष्य-जन्म पाकर भी मैंने धर्म कार्य कुछ भी नहीं किया। कोई भी प्रयत्न इस संसार-सागर से पार उतरने के लिये नहीं कर सका। जीवन के सभी सुनहरे दिन काम-धन्धा करने में और रात्रियों सोकर गुजार दी। रात-दिन पेट भरने की समस्या में ही उलझा रहा।
कार्य कार्य का मुझे कुछ मी भान नहीं रहा। सभी कुछ करता गया। नहीं किया तो केवल भव-भ्रमण से बचने का उपाय। उसका मुझे डर नहीं रहा
और इसीलिये मैंने धर्म को नहीं अपनाया। पर अब मैं क्या करूँ? मेरी नाव मझधार में पड़ी है। हे भगवान! अब मुझे आपका ही भरोसा है, आप ही मेरा उद्धार
करो!"
तो सुमति चेतन को इसीलिये बार-बार समझाती है कि तुम पहले ही चेत जाओ, ताकि अंत-समय में फिर पश्चात्ताप न करना पड़े। वह भिन्न-भिन्न प्रकार से चेतन के विवेक को जागृत करने का प्रयत्न करती है, तथा सम्यज्ञान प्राप्त करने का आग्रह जारी रखती है। ज्ञान प्राप्ति के तीन साधन:
ज्ञान की प्राप्ति तीन प्रकार में होती है ऐसा एक सुभाषित में कहा गया