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________________ • यही सयानो काम ! [१५८] आ जाएगा धन सब यहीं रह जाम्पा और जीव केवल पापों की पोटली लिये ही चल देगा। श्री अमीऋषि जी महाराज ने भी कहा है : करत जगत धंध अंग के समान सुख, ऐश में भुलायो मन भास नहीं काल की। ऊंडी-ऊंडी नीव देइ. वुणावे आवास जाली, झरोखा अटारी चित्र शोभा सुर साल की। मात तात नारी सुत, मोह में बंधाय रह्यो, तृष्णा अर्जिक चित्त घरे धन माल की। अमीरिख कहे घट कि जब मौत आय, जावे सब छोड़ बाँध पोट पाप जाल की। वास्तव में ही यह शरीर जिसके रहने के लिये मनुष्य बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएँ बनाता है, भोग-विलास के असंख्य साधन जुटाकर ऐश-आराम में निमग्न रहता है, माता-पिता, पत्नी तथा पुत्रादि के मोह जाल में बँधकर उनके लिये तृष्णा वश अधिक से अधिक धन-संचय करने का प्रात्न करता है। वह सब मृत्यु का बुलावा आते ही यहीं छूट जाता है और जीव : अकेला ही अपने पाप-कर्मों के साथ चल देता किसी को मालूम नहीं पड़त्रा कि किस दिन इस शरीर की धड़कनें समाप्त हो जाएंगी। हम देखते हैं कि घड़। का पेंडुलम रूकते ही उसकी टिक-टिक बन्द हो जाती है, उसी प्रकार हृदय की धड़कन बन्द होते ही शरीर की समस्त क्रियाएँ रुक जाती हैं। कवि ने इस शरीर को भी घड़ी के समान ही बताया है : नर तन है घड़ी समान, बले तब तक ही अच्छा मान! कल पुर्जे हड्डी के सारे, बने हैं मांस नसों के सारे, चमक ऊपर चमड़ी का मान! चले तब तक ही अच्छा जान! अर्थात् यह शरीर भी एक प्रकार की घड़ी है, जब तक चलती है, अच्छा है। घड़ी में जिस प्रकार कल-पुर्जे होते हैं, उसी प्रकार शरीर में भी हड्डी, मांस और नख रूपी कल-पुर्जे बने हुए हैं। इसके अलावा घड़ी के ऊपरी हिस्से पर जैसी चमक होती है शरीर रूपी बड़ी पर भी चमड़ी की चमक है। चमड़ी पर ही शरीर का सारा सौन्दर्य निर्भर है। अगर वह न हो तो फिर क्या रह जाता है? कुछ भी नहीं, आगे कहते हैं - जब तक है नाड़ी का उपना, प्यारा लगता है तन सबका। रूकने पर होते हैरान चले तब तक ही अच्छा जान! जब तक घड़ी की टिक-टेक होती है, घड़ी का महत्त्व माना जाता है। इसी प्रकार इस नर-तन में भी जा तक नाड़ी का ठपका होता है, शरीर सबको प्रिय लगता है। किन्तु इसके रुकते ही सबकी प्रसन्नता काफूर हो जाती है। तथा
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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