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यही सयानो काम और नंगे फिरें तो धनवानों का धन इकट्ठा करना उचित है क्या? समझदार और समदर्शी व्यक्ति अधिक परिग्रह का संचय नहीं करता। एक उदाहरण देखिये -
पेशगी तनख्वाह बगदाद का एक खलीफा राज-कार्य और प्रका की सेवा के बदले में प्रतिदिन शाम को केवल तीन दिरम अपने लिए लिया काते थे। यद्यपि राज्य के अन्य कर्मचारियों का वेतन इससे कहीं अधिक था किन्तु खलीफा अपने लिये तीन दिरम ही पर्याप्त मानते थे।
एक बार ईद का त्यौहार आया, पर खलीफा के बच्चों के पास नए कपड़े नहीं थे। अत: उनकी बेगम ने पति से कहा - अगर आप मुझे तीन दिन की तनख्वाह पेशगी दिलवा दें तो मैं बच्चों के लिए नये कपड़े ना लें।
पर खलीफा ने क्या उत्तर दिया ? कहा - "बेगम, मैं तनख्वाह पेशगी ला तो ढूँ, किन्तु अगर मैं तीन दिन तक जीवित न रहा तो यह कर्जा कौन चुकाएगा? अगर तुम खुदा से मेरी जिन्दगी का तीन दिन का पट्टा ला दो तो मैं खजाने से तीन दिन की तनख्वाह पेशगी उठा लूँ।"
कितने सुन्दर विचार थे खलीफा के! संसार का प्रत्येक महापुरूष ऐसा ही सोचता है। वह अपने पास जो कुछ भी होता है, उसे सबको बाँटकर खाना चाहता है। होना भी ऐसा ही चाहिए। आदान-प्रदान के बिना व्यवस्था भी सुचारू रूप से नहीं चल सकती। आप जब भोजन के लिए बैठते हैं, थाली परोस कर लाई जाती है। इस समय थाली अगर कहे कि मैं किसी को खाना नहीं देती तो बताइये साहब! कैसे काम चलेगा? और अमर थाली ने हाथ को दे दिया पर हाथ कहे कि मैं किसी को नहीं देता तो फिर? इसी प्रकार हाथ को मिल जाए और वह . मुँह को देने के लिए तैयार न हो तो फिर पेट कैसे भरेगा
कहने का आशय यही है कि थाली हाष को, हाथ मुंह को तथा मुँह पेट को देता है, तभी काम चलता है। यह सब दान की प्रक्रिया है। और इसके पूर्ण होने पर ही पेट मरता है। इसी प्रकार समाच के व्यक्तियों में से जब व्यक्ति एक दूसरे को देते हैं तभी समाज की व्यवस्था ठीक बैठती है।
किन्तु यह सब भावना और सुविधा से होना चाहिए। अर्थात् दान भी अपनी शक्ति को देखकर ही किया जाय तभी ठीक है। जैसे आपको बढ़े हुए नाखून काटने पड़ते हैं, किन्तु अगर उन्हें भी आवश्यकता से अधिक काट दिया जाय तो खून निकलता है, तकलीफ होती है। इसी प्रकार शक्ति के अनुसार ही दान भी दिया जाता है। अगर शक्ति नहीं है और लाई कह भी दे कि इतना दान करो, तो व्यक्ति कहाँ से करेगा? इसलिये हमारा यही कहना है कि अगर शक्ति है तो दान अवश्य करो। इससे पुण्य-कमाँ का अंचय होगा और वही आत्मा के साथ जाएगा। अन्यथा यह शरीर तो नाशवान है, जिस दिन भी यमराज का बुलावा